हम जम्मो हरामजादा आन… (डॉ.मुकेश कुमार के हिन्दी कविता के अनुवाद)

पुरखा मन के किरिया खा के कहत हंव के हम जम्मो झन हरामजादा आन आर्य, शक, हूण, मंगोल, मुगल, फिरंगी द्रविड़, आदिवासी, गिरिजन, सुर-असुर कोन जनि काखर काखर रकत बोहावत हावय हमर नस मन म उही संघरा रकत ले संचारित होवत हावय हमर काया हॉं हमन जम्मो बेर्रा आन पंच तत्व मन ल गवाही मान के कहत हंव- के हम जम्मो हरामजादा आन! गंगा, जमुना, ब्रम्हपुत्र, कबेरी ले लेके वोल्गा, नील, दलजा, फरात अउ थेम्स तक अनगिनत नदियन के पानी हलोर मारथे हमर नारी मन म ओखरे मन ले बने…

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