सुनो-सुनो ग मितान, हिरदे म धरो धियान। बाबा के कहना "मनखे-मनखे एक समान"।। एके बिधाता के गढ़े, चारों बरन हे,… Read More
गिरे-परे-हपटे ल रददा देखइया, जन-मन के मया-पीरा गवइया। "मोर संग चलव" कहिके भईया आँखीओझल होगए रद्दा रेंगइया।। माटी के मोर… Read More
सरग ह जेखर एड़ी के धोवन, जग-जाहरा जेखर सोर। अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुईयां हवय मोर॥ कौसिल्या जिहां के… Read More
तोर मन का हे तहीं जान? तैं ठउंका ठगे असाढ। चिखला के जघा धुर्रा उड़े, तपे जेठउरी कस ठाड़॥ बादर… Read More
छत्तीसगढ़ी भासा के पुन-परताप ल उजागर करे बर धनी धरमदास जी, लोचनप्रसाद पाण्डे, सुन्दरलाल शर्मा जइसे अऊ कतकोन कलमकार अऊ… Read More
तईहा के गोठ ल भईया, बईहा लेगे ग।मनखे ल हर के मनखे के छईंहा लेगे ग॥एक मंजला दू मंजला होगे,दू… Read More
मोर गांव के करंव बंदन,माटी माथा के चंदन।सपना सुग्घर दूनो नयनन,आड़ी-पूंजी जिनगी धन॥हरियर-हरियर खेती-खारलीपे-पोते घर-दुवार॥गंगा कस नरवा के पानी,अन धन… Read More
सरग ह जेखर एड़ी के धोवन, जग-जाहरा जेखर सोर।अइसन धरती हवय मोर, अइसन भुईयां हवय मोर॥कौसिल्या जिहां के बेटी, कौसल… Read More