छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – जंगल ही जीवन है

जम्‍मो जंगल ला काटत हन गॉंव सहर सम्‍हराए बर।काटे जंगल किरिया पारत गॉंव सहर जंगलाये बर।।जंगल रहिस ते मंगल रहिस, जंगल बिन मंगल नइये।पौधा रोपन गम्‍मत करथन, फेर मंगल ला मनाये बर।हरियर रूख, कतको सोंचेन, भितरी म बड़ हरियाबो।बपरा ते दुनिया छोड़न, रोथन काबर हरियासे बर।रिसा गइन करिया बादर मन, नास देखके जंगल के।पहिली बरसे, अब तो रोथें, मन ला बस फरियाये बर।कुरसी मन जंगल के बदला सकुनी सही चुकावत हे।उदिम करत हे मनखे कतरके, जंगल फेर बनाए बर।जंगल छोड़े बंदर भालू सहर म अउ खूंखार बनिन।दांत अउ नख खुरसी…

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