मे हा चालीस बछर से रोज कोरट जावत हवव

आज करिया कोट के महिमा ला बतावत हववं, मे हा चालीस बछर से रोज कोरट जावत हववं, ए दारिक तोर फ़ैसला जरूर करवा दू हूं कहिथे, पर मोर नाम आथे तो रोघहा हा घर मा रहिथे, मोर से हर पेसी मा वो दु सौ रुपया पेसगी लेथे,, अउ कोरट बाबू मन संग सन्झा कुन चेपटी पीथे, बिहनिया उकील हा साहब के कुकुर ला घुमाथे, अउ मंझनिया ओखर डौकी बर साग भाझी लाथे , बिरोधी हा भगा गेहे,रात दिन के पेसी से हार के, तभो ले केस ला धरे हे मोर…

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