लइका मन मं पढ़इ लिखइ के सउख कइसे बाढ़य?

बहिनी मन, ए तो तुमन जानत होहु कि लइका मन हमर देस के भविष्य ल संवारथे। लइका मन के सउख ल देख के हमन ओखर भविष्य के नकसा बना लेथन। आजकल हमन देखथन कि हमर लइकामन के मन ह पढ़ई लिखई में जादा नइ लागय। का कारन ए-एला हमन सोचे बर मजबूर हो जथन। लइका हर पहिली महतारी करा कुछू सिखते। लइका मन में पढ़ई लिखई के सउख बढ़ाय बर, लइका के महतारी ल घलो पढ़ना लिखना जरुरी हावय। महतारी ल देखके नान-नान लइका मन घलो पढ़ई में मन लगाहीं।…

Read More

रमिया केतकी के कथा – सत्यभामा आड़िल

एक रहिस रमिया। एक रहिस केतकी। दूनों एके महतारी के बेटी रिहीन। खारुन नदिया ले चार कोस दूरिहा रक्‍सहूं बूड़ती मं एक गांव ‘कसही’। भइगे दूनों उहीं रहत रहींन अपन महतारी संग। महतारी ह खाली हाथ रहीस। खेतखार मं बनीभूती करके अपन जिनगी चलावय। रमिया केतकी बिहाव के लइक होगे। दुनों के रूपरंग सोन जइसे जग-जग ले। उंखर भरे जोबन ल देख के सबो उंखरे डहार खिंचावत आवयं। समय अपन रंग देखइस। धान-कर्टई मिंजई खतम होगे, तहां ले बर बिहाव खातिर, सब कमइया किसान मन, लड़का लड़की खोजे बर निकलगें।…

Read More

लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम

आखिर लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम। छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के रूप म आखिरी मुहर लगाय बर बाकी हे। अऊ विदेस म परचम लहरागे। वाह! वाह! हमार भाग! छत्तीसगढ़ी भासा के भाग खुलगे अऊ एखर बढ़ती बेरा आगे। कोनों नइ रोक सकय एखर उन्नति के दुवार ल। हिन्दी के छोटे बहिनी, अऊ मगही मैथिली के सहोदरी छत्तीसगढ़ी ककरो ले कमती नइये। ए ह सबले जादा मुचमुचही हावय। अमेरिका म भारत के जनपदीय भासा के जानकार मन ल नौकरी म रखे जाही ये समाचार पढ़केसुनके छत्तीसगढ़िया मन फूले नइ समावत हे, काबर…

Read More

हाय रे मोर मंगरोहन कहिनी – डॉ. सत्यभामा आड़िल

बीस बछर होगे ये बड़े सहर मं रहत, फेर नौकर-चाकर मिले के अतेक परेसानी कभु नई होईस। रईपुर ह रजधानी का बनिस, काम-बूता के कमती नई। भाव बढ़गे काम करईया मन के। घर के काम बर घलो कोनो नई मिलय। कहूं मिलगे एकाध झन, त सिर ऊपर करके, जबान लड़ाके बराबरी मं बात करथें। उड़िया बस्ती अब्बड़ होगे। रईपुर सहर ह उड़ीसा राज ले सीधा-साधा जुड़े हे। सड़क, रेल, जंगल सबो डहार ले उड़िया मनखे मन आथे अऊ जाथें। सीधा जगन्नाथ भगवान करा पहुंच जथें। उड़ीसा ले बेपारी मन अऊ…

Read More

सीला बरहिन नान्हें कहिनी – सत्यभामा आड़िल

सीला गांव ले आय रिहिस, त सब ओला सीला बरहिन कहांय। अपन बूढ़त काल के एक बेटा ल घी-गुड़ खवावय, त देवर बेटा मन ल, चाऊर पिसान ल सक्कर म ए कहिके पानी मं घोर देवंय। देवरानी जल्दी खतम होगे देवर तो पहिलिच खतम होगे रिहिस। नान-नान लईका देवर के फेर सीला बरहिन के बेटा ह सबले छोटे रिहिस। देवर के बड़े दूनों बेटा मास्टर होगें मेट्रिक पढ़े के बाद। सीला बरिहन अपन बेटा ल देवर बेटा घर पहुंचईस पढ़े बर। हर आठ दिन मं घी, चाऊंर ले के आवय।…

Read More