उनमन नहावत तो होहीं रे : डॉ. विमल कुमार पाठक के गीत

करा असन ठरत हावय पानी रे नदिया के उनमन नहांवत तो होहीं रे। उंखरे तो गांवे ले आये हे नदिया ह होही नहांवत मोर जोही रे। महर-महर महकत मम्हावत हे पानी ह। लागत हे घुरगे हे सइघो जवानी ह। चट कत कस, गुर-गुर ले छू वत हे अंग-अंग ल, चूंदी फरियावत तो होही रे। तउरत नहांवत तो होही रे। अब तो गुर-गुर एक ढंगे के लागत हे। अट गे पानी हा, सुरता देवावत हे। ओठ उंकर चूमे कस मिट्ठ -मिट्ठ लागत हे। पीयत अउ फुरकत तो होही रे। घुटकत अउ…

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