जिहां जाबे पाबे, बिपत के छांव रे। हिरदे जुड़ा ले आजा मोर गांव रे।। खेत म बसे हाबै करमा के तान। झुमरत हाबै रे ठाढ़े-ठाढ़े धान।। हिरदे ल चीरथे रे मया के बान। जिनगी के आस हे रामे भगवान।। पीपर कस सुख के परथे छांव रे। हिरदे जुड़ा ले, आजा मोर गांव रे। इहां के मनखे मन करथें बड़ बूता। दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता। किसान अउ गौंटिया, हाबैं रे पोठ। घी-दही-दूध-पावत, सब्बो हें रोठ। लेवना ल खोंच के ओमा नहांव रे। हिरदे जुड़ा ले, आजा मोर गांव…
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हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे : डॉ. विनय कुमार पाठक के गीत
जिहाँ जाबे पाबे, बिपत के छांव रे। हिरदे जुडा ले आजा मोर गांव रे॥ खेत म बसे हावै करा के तान। झुमरत हावै रे ठाढे-ठाढे धान॥ हिरदे ल चीरथे रे मया के बान। जिनगी के आस हे रामे भगवान॥ पीपर कस सुख के परथे छांव रे। हिरदे जुडा ले, आजा मोर गाँव रे ॥ इहाँ के मनखे मन करथें बड़ बूता। दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता॥ किसान अउ गौटिया, हावैं रे पोठ। घी-दही-दूध-पावत, सब्बे रें रोठ॥ लेवना ल खांव के ओमा नहाँव रे। हिरदे जुडा ले, आजा मोर…
Read Moreछत्तीसगढ़ी भाखा हे : डॉ.विनय कुमार पाठक
एक हजार बछर पहिली उपजे रहिस हमर भाखा छत्तीसगढ़ के भाखा छत्तीसगढ़ी आय जउन एक हजार बछर पहिली ले उपजे-बाढ़े अउ ओखर ले आघु लोकसाहित्य म मुंअखरा संवरे आज तक के बिकास म राज बने ले छत्तीसगढ़ सरकार घलो सो राजभासा के दरजा पाए हे। छत्तीसगढ़ी भाखा ल अपने सरूप रचे-गढ़े बर बड़ सकक्कत करे ल परे हे- पीरा-कोख मा जन्मेे, मया- गोदी मा पले, माटी महमई धरे अंचरा, छत्तीसगढ़ी भाखा हे। महानदी लहरा, जेखर मुअखरा, होंठ देरहौरी गाल बबरा, छत्तीसगढ़ी भाखा हे। छत्तीसगढ़ी ह ब्रज-सांही गुरतुर भाखा हे। पूर्वी…
Read Moreभूमिका : कथात्मकता से अनुप्राणित कहानियाँ
आज या वर्तमान आधुनिकता के अर्थ में अंगीकृत है। आज जो है वह ‘अतीत-कल’ का अगला चरण है और जो ‘भविष्य-कल’ में ‘अतीत-कल’ बन जायेगा, इसलिए आज का अस्तित्व समसामयिक संदर्भों तक सीमित है। परंपरा का अगला चरण आधुनिकता है लेकिन यही रूढ़ हो जाता है तब युग के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पाता। जब हम दाहिना चरण बढ़ाते हैं तब वह आधुनिकता या विकास का सूचक है। बायाँ चरण परंपरा का प्रतीक है, लेकिन जब पुनः बायाँ चरण बढ़ाते हैं तब यह आधुनिकता को अंगीकार करती है और…
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