Gajanand Prasad Dewangan

बरसा गीत

हरियागे धरती अऊ खेती म धान, कई मन के आगर हें चतुरा किसान। बरसथे बादर, अऊ चमकत हे बिजुरी, नोनी… Read More

6 years ago

माटी हा महमहागे रे

गरजत घुमड़त, ये असाढ़ आगे रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे॥ रक्सेल के बादर अऊ बदरी करियागे, पांत पांत… Read More

6 years ago

मनतरी अऊ मानसून

नांगर बइला बोर दे पानी दमोर दे ।। लहरा के बादर मन ला ललचाथे आवथे अऊ जावथे किसान ला उमिहाथे… Read More

7 years ago

सुघ्घर लागथे मड़ई

ओरी ओर सजथे , बजार भर दुकान , टिकली फीता फुंदरी , रंग रंग के समान । भीड़ भाड़ लेनदेन… Read More

7 years ago

कविता : छत्तीसगढ़ तोर नाव म

भटकत लहकत परदेसिया मन, थिराय हावंय तोर छांव म। मया पिरीत बंधाय हावंय, छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥ नजर भर दिखथे,… Read More

9 years ago

दिया बन के बर जतेंव

दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥ अंधियारी हा गहरावथे , मनखे ला डरूहावथे ।… Read More

9 years ago

गजानंद प्रसाद देवांगन जी के कविता

चूनी के अंगाकर कनकी के माढ़ । खा के गुजारत हे जिनगी ल ठाढ़ । कभू कभू चटनी बासी तिहार… Read More

9 years ago