भोंभरा : कबिता

भुइंया ह बनगे तात-तवई बंडोरा म तोपागे गांव-गंवई नइये रूख-राई के छईहां रूई कस भभकत हे भुईंहां रद्दा रेंगइया जाबे कती करा थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा गला सुखागे, लगे हे पियास कोनो तिर पानी मिले के हे आस तरर-तरर चूहत हे पछीना जिव तरसत हे, छईहां के बिना का करबे जाबे तैं कती करा थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा कछार म नदिया के कलिंदर तै खाले पीपर तरी बईठके थोरिक सुरता ले नदिया के पानी ह अमरित कस लागय बिन पानी मोर भाई, परान नई बांचय सुन्ना…

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पूस के जाड़

पुरवाही चलय सुरूर-सुरूर। रूख के पाना डोलय फुरूर-फुरूर॥ हाथ गोड़ चंगुरगे, कांपत हे जमो परानी। ठिठुरगे बदन, चाम हाड़। वाह रे! पूस के जाड़॥ गोरसी के आंच ह जी के हे सहारा। अब त अंगेठा कहां पाबे, नइए गुजारा॥ नइए ओढ़ना बिछना बने अकन। रतिहा भर दांत कटकटाथे, कांप जाथे तन। नींद के होगे रे कबाड़। वाह रे! पूस के जाड़॥ बिहनिया जुवर रौनिया बड़ लागय नीक। घर भीतरी नई सुहावय एको घरिक॥ चहा गरम-गरम पिए म आनंद हे। सुरूज के निकले बिना, काम बूता बंद हे॥ सेटर अऊ साल…

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धान बेचई के करलई

किसान के पीरा ह जग हँसई होगे। मंडी म धान के बेचई करलई होगे॥ अधरतिहा ढिलाइस बईला-गाड़ी। जुड़ म चंगुरगे हाथ-गोड़ माड़ी॥ झन पूछ भूख, पियास नींद के हाल। चोंगी, माखुर तको जइसे, होगे बेहाल॥ होटल के गरम वोहा दवई होगे। मंडी म धान के बेचई, करलई होगे॥ लोग हे मंडी म धान के ढेरी। खचित हे हमर पर होही गा देरी॥ नोनी के दई ह बने त केहे रिहिस। दू ठन चाउर के चीला, चटनी संग जोरे रिहिस॥ ऊहू गठरी कती गिरिस, मोर रोवई होगे। मंडी म धान के…

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