छल प्रपंच के होरी जरगे छलकय निरमल गंगा आते साठ बसंत राज के तन-मन होगय चंगा जूही चमेली चंपा मोंगरा फुलगे ओरमा झोरमा केकती केवरा अउ गुलाब संग धरती गावय करमा लाल-लाल दहकत हे परसा सेम्हर घलो इतरागे कहर-महर सिरसा के फुलुवा थकहा जीव जुड़ागे झमकय घाठ धठौंधा पैरी बाजय ढोल मृदंगा आते साठ बसंत राज के तन मन होगय चंगा मउहा टपकत हे घनबहेरा अउ सरसो पिंउरागे खेत खार कोला बारी बनझारी तक हरियागे जुन्ना पान पतेरा झरगे फुलडोंहड़ी छतरागय लगथे सिरतो हमरो जिनगी नवा अंजोरी आगय सुख सुमता…
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