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व्यंग्य

पथरा के मोल

पथरा मन, जम्मो देस ले, उदुप ले नंदाये बर धर लीस। घर बनाये बर पथरा खोजत, बड़ हलाकान होवत रेहेंव। तभे एक ठिन नानुक पथरा म, हपट पारेंव। पथरा ला पूछेंव – सबो पथरा मन कती करा लुकागे हे जी ? में देखेंव – नानुक पथरा, उत्ता धुर्रा उनडत रहय। मे संगे संग दऊंड़े लागेंव। […]

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कहानी

सबले बढ़िया – छत्तीसगढ़िया

नानकुन गांव धौराभाठा के गौंटिया के एके झिन बेटा – रमेसर , पढ़ लिख के साहेब बनगे रहय रइपुर म । जतका सुघ्घर दिखम म , ततकेच सुघ्घर आदत बेवहार म घला रहय ओखर सुआरी मंजू हा । दू झिन बाबू – मोनू अउ चीनू , डोकरी दई अउ बबा के बड़ सेवा करय । […]

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व्यंग्य

पोल खोल

पोल खोल देबो के नारा जगा जगा बुलंद रहय फेर पोल खुलत नी रहय। गांव के निचट अड़हा मनखे मंगलू अऊ बुधारू आपस म गोठियावत रहय। मंगलू किथे – काये पोल आये जी, जेला रोज रोज, फकत खोल देबो, खोल देबो कहिथे भर बिया मन, फेर खोलय निही। रोज अपन झोला धर के पिछू पिछू […]

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व्यंग्य

बोनस के फर

जबले बोनस नाव के पेड़ पिरथी म जनम धरे हे तबले, इंहा के मनखे मन, उहीच पेंड़ ला भगवान कस सपनाथे घेरी बेरी…….। तीन बछर बीतगे रहय, बोनस सपना में तो आवय, फेर सवांगे नी आवय। उदुप ले एक दिन बोनस के पेंड़ हा, एक झिन ला सपना म, गांव में अमरे के घोसना कर […]

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व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : रोटी सेंकन मय चलेंव………

छत्तीसगढ़िया मन के आदत कहां जाही। बिगन भात बोजे पेट नी भरय। फेर कुछ समे ले मोर सुवारी ला को जनी काये होगे रहय, कोन ओकर कमपयूटर कस बोदा दिमाग ला हेक करके, रोटी नाव के वाइरस डार दे रहय, फकत रोटीच सेंके के गोठ करथय। भाग के लेखा ताय, अनपढ़, निच्चट सिधवी अऊ नरम सुभाव टूरी संग […]

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व्यंग्य

व्‍यंग्‍य : कब मरही रावन ?

गांव म हरेक पइत, दसरहा बखत, नाटक लील्ला खेलथे। ये दारी के लील्ला, इसकूल के लइका मन करही। लइका मन अपन गुरूजी ला पूछीन – काये लील्ला खेलबो गुरूजी ? गुरूजी बतइस – राम – रावन जुद्ध खेलबो बेटा। मेंहा रात भर बइठ के पाठ छांट डरे हौं। कोन कोन, काये काये पाठ करहू ? […]

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व्यंग्य

गनेस के पेट

हमर गांव के लइका मन, गनेस पाख म, हरेक बछर गनेस बइठारे। गांवेच के कुम्हार करा, गनेस के मुरती बनवावय। ये बखत के गनेस पाख म घला, गनेस मढ़हाये के अऊ ओकर पूजा के तियारी चलत रहय। समे म, कुम्हार ला, मुरती बनाये के, आडर घला होगे। एक दिन, गांव के लइका मन ला, कुम्हार […]

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व्यंग्य

कइसे झंडा फहरही ?

  पनदरा अगस्त के पहिली दिन, सरपंच आके केहे लागीस ‌- डोकरी दई, ये बछर, हमर बड़का झंडा ल, तिहीं फहराबे या …..। मोर न आंखी दिखय, न कान सुनाये, न हाथ चले, न गोड़, मेहा का झंडा फहराहूं – डोकरी दई केहे लागीस ? सरपंच मजाक करीस – ये देस म जे मनखे ला दिखथे, जे […]

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व्यंग्य

आऊटसोरसिंग

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”] मंगलू अऊ बुधारू खुसी के मारे पगला गे रहय। लोगन ला बतावत रहय के, हमर परदेस के किरकेट टीम ल रनजी टराफी म खेले के मउका मिलगे। गांव के महराज किथे – ये काये जी ? एमा खुस होये के काये मतलब हे ? सरकार ल खुस होना […]

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कहानी

सोलह सिनगार

सावन के महिना ल, सहराती महिला मन, बछर भर अगोरय। रंग रंग के पहिर ओढ़ के चटक मटक किंजरय। एक बछर, सावन म, महिला मन बर, नावा किसिम के परतियोगिता राखीस – जे महिला, सावन भर, सोलह सिनगार ले, सजे धजे रहि तेला, सावन के आखिरी दिन, भारी पुरूसकार देके सममानित करे जाही। सिनगार के […]