महेस, लखन अऊ संतराम आज अबड़ खुस हे ऊंखर दाई ददा ,परवार के सबझन खुस हे अऊ अरोसी परोसी मन घलाव ऊंखर उछाह म संघरगे।आजेच तीनों झन ल नौउकरी म आय बर आदेस मिलीस हे। महेस ह सहर ले मिठई लाय हे तौन ल बांटत हे।लखन जलेबी बांटत हे ।संतराम के सुवारी ह तसमई अऊ सोंहारी बनाके परोसी मन घर भेजत हे। सबो संगवारीच हरय। तीनों झन गजब दिन ले बेरोजगारी , नकारा अऊ ठेलहा के ताना झेले रहीन। महेस 26 बच्छर के कुंवारा गबरु ऊंचपूर जवान लइका हे।अइसने लखन…
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चिरई चिरगुन बर पानी निकालव
मनखे जनम बड़ भागमानी आय।चौरासी लाख योनी म इही जनम ल पुन पाय के भाग मिलथे। पुन कमाय बर जादा मिहनत करेबर नई परय।हमर बेद पुरान म सुघ्घर ढंग ले संदेस देय हावय भूखे ल भोजन, पियासे ले पानी अऊ सगासोदर के मानगऊन अतका म अबड़ेच पुन मिल जाही। मनखे मन के संगवारी म गाय गरु, कुकुर बिलई संग चिरई चिरगुन घलाव आय। घाम पियास के दिन आ गेहे। गरमी के सेती रुख राई के पाना सुखाके झरगे। दूसर कोती कुंआ बाऊली नंदावत जावत हे,अऊ जेन हावय ओखर पानी अटावत…
Read Moreखेत के मेड़
पूनाराम अपन 10 बच्छर के बेटी मोनिका ल फटफटी म बैईठार के भेलाई ले अपन पुरखौती गांव भुसरेंगा छट्ठी म लेजत रहीस।भुसरेंगा गांव पक्की सड़क ले एक कोस म जेवनी बाजू हावय।नहर के पार के खाल्हे म मुरुम के सड़क बने हे जौन ह अब डामर वाला पक्की सड़क बनईया हे। तीरे तीर गिट्टी के कुढ़ा माढ़े हे। दुनो बाप बेटी गोठियात फटफटी म बैइठ के जावत हे। पूनाराम अपन नानपन म बिताय दिन ल सुरता कर-करके नोनी ल बतावत हे।येदे गौटिया के खेत आय, येदे पटइल के, ये दाऊ…
Read Moreदारु संस्कृति म बूड़त छत्तीसगढ़
हमर छत्तीसगढ़ ह कौसिल्या दाई के मईके हरे।जौन राम ल जनमदिन जेन मरयादा पुरुसोत्तम होईन। राम कृष्ण के खेलय कूदय छत्तीसगढ़ के कोरा सुघ्घर अऊ पबरित रहीस।आज अईसे का होगे कि अईसन छत्तीसगढ़ म दारु संस्कृति ह पांव लमावत हे। छट्ठी बरही , जनमदिन ,बरसी,सगई, बर-बिहाव, नौकरी लगे,परमोसन, तीज-तिहार, मेला-मड़ई,सबो बेरा म मंद दारु अपन परभाव देखाथे। मैं एक घर छट्ठी म गय रहेंव। मंझनिया भातखाय के बेरा सबोझन ल बलाईस, छत म टाटपट्टी जठा के छत्तीसगढ़िया रेवाज म बईठारिस। पतरी बांट के बरा, सोंहारी, तसमाई, छोले पोरस दिन ,पाछू-पाछू…
Read Moreनानपन के होरी
नानपन म होरी खेले म अड़बड़ मजा आवय, खोर गली के चिखला म, जहुंरिया मन घोन्डावय। पहिली संझा होली के लकड़ी घर घर ले लावन। सियान संग पूजा करके होली हमन जलवावन। अधरतिया ले नंगारा बजाके अंडबंड गीत गावन। कभू कभू परोसी घर के, झिपारी, लकड़ी चोरावन। उठ बिहनिया बबा संगधरके होली डांड़ जावन। लकड़ी छेना नरियर डारन ऊद बत्ती जलावन। बबा पाछू करीस ताहन नरियर ल खोधियावन। फोरके नरियर खुरहोरी ल झपट-झपट के खावन। पिचकारी म पानी भरके रेंगईया ऊपर पिचकन। कनकन पानी दुसर पिचके त एती ओती बिदकन।…
Read Moreबजरहा होवत हमर तीज तिहार
छत्तीसगढ़ म आठोकाल बारो महिना कोई न कोई तिहार आते रथे। चइत, बइसाख , जेठ, अषाढ़, सावन ,भादो, कुंवार, कातिक, अग्घन ,पूस ,मांग, फागुन सबो महिना हमन तीज तिहार मनाथन। हमर पुरखा मन काम काज ले फुरसुद अऊ मगन होके इरखा द्वेस ल भुलाय खातिर तिहार ल सिरजाय रहिन।मया-पीरा, सुख-दुख भुलाय बर अऊ घर-परिवार, गांव-समाज म मेल जोल नाना परकार के बाहना ओला उही मन जानय ।फेर ऊंखर बनाय तीज तिहार ल अब हमन बजरहा बना डारेन।पुरखा मन देश, काल, इस्थिति-परिस्थिति अऊ बेरा कुबेरा ल देख ताक के तिहार बनाय…
Read Moreकहानी : अलहन के पीरा
गुमान ओ दिन अड़बड़ खुस रहिस जेन दिन ओखर घर लछमी बरोबर बेटी ह जनम लीस। ओकर छट्ठी ल गजबेच उछाह मंगल ले मनाईस, गांव भर ल झारा-झारा नेवता पठोइस। बरा, भजिया, सोंहारी अऊ तसमई संग जेवन कराइस।अरोस परोस के सात–आठ गांव के पटेल , मंडल, पंच, गऊंटिया,बड़े किसान ल घलाव नेवता देय रहीस।बेटी के नांव सरसती राखिस। ओला बेटी पाय के बड़ गुमान राहय। गुमान के अंगना म सरसती ह किलकारी मारत ,खेलत कूदत बाढ़े लागिस। इस्कूल जाय के लाईक होइस तब गुमान ओकर दाखिला करा दीस।नोनी इस्कूल जाय…
Read Moreसीख : एक लोटा पानी
मोनी! तोर बबा ल एक लोटा पानी दे दे ओ। कुरिया बाहरत दाई ह अपन बारा बच्छर के बेटी ल हांक पारिस। लइका दाई के रेरी ल कान नई धरिस अऊ खोर म जाके बईठ के मोबाइल म गेम खेलत रहिगे। एती खटिया म सूते बबा घेरी बेरी चिचियावत राहय।लइका के अरदलीपन ल देख के ओकर दाई खुदे पानी लेग के दे दिस अऊ गुने लगिस, कि मोर बेटी, जौन ल अड़बड़ अकन पैसा भरके अंगरेजी इस्कूल म पढ़ावत हौ, वो एक लोटा पानी देय बर नई सीखत हे। हे…
Read Moreसंगवारी के पंदोली
नानपन के संगवारी आय कुंवरसिंह अऊ नरोत्तम ।कुंवर सिह मन चार भाई होथे जेमा अपन तीसर नम्बर के आवय। ददा के किसानी जादा नई राहय जेकर सेती ओमन आघू पढ़े नई सकीन अऊ किसानी के बुता म धियान लगाईंन। ददा ह संग ल अबेरहा छोड़ दिस। चारो भाई मिलके महतारी संग रहीन।समे आवत गिस बड़ेभाई अऊ मंझला के बर बिहाव घलाव होगे , बहू के हाथ के पानी पीके असीस देवत दाई घलाव एक-दू बच्छर म संग ल छोड़ के चल दिस। दसकरम के दिन सबो नत्ता गोत्ता मन सकलाय…
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