धरनहा – पं. जगमोहन प्रसाद मिश्र के गीत

तोर भोली सुरत मोला निक लागे रे, मोला निक लागे । हरियर हरियर लुगरा पहिरे चूरी कारी कारी धीरे धीरे आवत रहे बोझा धरे भारी तोला देखेंव तभे ले मोर सुध भुलागे । झिमिर झिमिर पानी बरसै चलथे पुरवाई तोरेच सुरता आथे कईसे करौं भाई तोर बिना मोला कईसे सुन्ना सुन्ना लागे । ताना देबे गारी देबे तोरेच कोती आहौं सबे कुछु सइहौं टूरी मारो घला खाहौं हांथ जोडे खडे र‍इहंव तोरेच आगे । ददा छोडेव दाई छोडेंव छोडेंव अपन भाई तोरेच खातिर घूमत रहिथंव नदिया अमराई परे रहिथंव कदम…

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