मया-पिरीत के भूंइया छत्तीसगढ़,सेवा सद्भाव के मीठ अमृत छत्तीसगढ़,सोझ,सहज,सरलता के भूंइया छत्तीसगढ़,जिहां सिरजन,संस्कार,समरसता के बोहवत हे गंगा धार। इही निरमल धारा म हमर छत्तीसगढ़ के लोक परब अउ तिहार मन सिरजे हावय। हमर परब अउ तिहार मन खेती संस्कृति ले जुड़े हावय जउन ह मनखे ल मनखे संग जोर के कारज करथे। मनखे के हिरदे म प्रकृति अऊ खेती के प्रति मया पलपलावत रहिथे। खेती-किसानी के संग जिनगी जुड़े रहिथे। हमर खेती संस्कृति के अलगे चिन्हारी हे जेखर सेती हमर महतारी ल ‘‘धान के कटोरा‘‘ कहिथे। ‘‘धान के कटोरा‘‘ जब…
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कबिता : मोर अंगना मा बसंत आगे ना
आगे बसंत आगे ना, मोर अंगना मां बसंत आगे ना पियर-पियर आमा मउरे, लाली-लाली परसा फूले मन मंदिर महकन लागे ना, आगे बसंत आगे ना। मुच-मुचावय फगुनवा, मुच-मुचावय फगुनवा मन न ल महर-महर महकावय फगुनवा फगुनवा के रंग बरसाय बर बसंत आगे ना। महुवा के रस मन ला मतावन लागे ना बैरी बसंत हिरदे मां मया के बान चलावन लागे ना आगे बसंत आगे ना, मोर अंगना मा बसंत आगे ना। पियर-पियर सरसों फूलें, लाली-लाली परसा हिरदे मां करत हावय मधु बरसा अमुवा के डार मां कोयली कुहकन लागे ना…
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