लोक सुराज के परचार म दिखिस छत्तीसगढ़ी भासा

छत्तीसगढ़ी ल सिरिफ प्रचार-प्रसार के भाखा मानथे सरकार, काम-काज अउ पढ़ई-लिखई के नहीं! लोक सुराज के आरो ल छत्तीसगढ़ी भासा म सून अउ पढ़के मन गदगद होगे। चउक-चउक म बड़े-बड़े पोस्टर अउ पोस्टर म छत्तीसगढ़ी के हाना। रेडियो अउ टीवी म छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत। छत्तीसगढ़िया बर सबले बड़े खुसी के बात ये रहिसे के सरकार के योजना के आरो छत्तीसगढ़ी म दे जावत रिहिस हावय। फेर हमला खुसी ले जादा दुख होइसे के सरकार ह छत्तीसगढ़ी ल काम- काज अउ पढ़ई-लिखई के भासा बनाये के बजाय प्रचार-प्रसार के भासा समझत हाबे।…

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असल जिनगी म तको ‘नायक’ हाबे मनु फिल्म मेकर

छत्तीसगढ़ी भासा म बने एतिहासिक फिलिम ‘कहि देबे संदेश’ ह सन् 1965 म बने हाबे। ओ बखत स्वेत/स्याम के जमाना रिहिसे, मनोरंजन के माध्यम सिमित रिहिस, माने घरों-घर टीवी नइ पहुंचे रिहिस। ओ समे छत्तीसगढ़ी भासा म फिलिम के सिरजन ह सिरतोन म छत्तीसगढ़ के कला अउ छत्तीसगढ़ी भाखा के इतिहास ल पोट्ठ करथे। रायपुर जिला के खरोरा तिर के गांव कुर्रा (बंगोली) के कुर्मी परिवार म 1937 म जनमे मनु नायक ह अपन कारज के बल म समाज, गांव अउ राज बर सिरतोन म एक नायक बनके उभरिस। मनु…

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नेंगहा पंचन के नांव भुतावथे

संस्कार अउ रीति-रिवाज ह एक डहर अंचल ल अलग चिन्हारी देवाथे त दूसर कोति कतको झन के जीवका चलाय बर बुता काम घलोक देथे। सबो राज के अपन अलग-अलग रिवाज ह तइहा समे ले चले आवाथाबे। हमर छत्तीसगढ़ म सियान मन जोन चलागन चलाय हे ओमा सबो पंचन बर अलग-अलग बुता बनाए हे। या यहू कि सकथन के पंचन के वर्ण व्यवस्था बुता काम के हिसाब ले अलग-अलग बने हाबे। इही पाय के छत्तीसगढ़ म जाति भेद के दिंयार नइ सचरे पइस। कोनो भी सगा के होय ओमन अपन काम…

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यहू नारी ये

यहू नारी ये फेर येकर समाज म कोनो सुनाई होवे। कोन जांच कराही की येकर कोख कइसे हरियागे। नारी सही दिखत ये पगली संग कोन अपन तन के गरमी जुड़ाइस। हादसा होही या बरपेली। का समझौता घलो हो सकथे? मन म सवाल ऊपर सवाल उठत हे। फेर जवाब के अभाव म ओ सवाल के कोनो अस्तित्व नई दिखथे। हमर समाज आज नारी परानी ल देवी अउ जननी कइके उंखर मान बढ़ाथे। फेर का हमर मन मानथे ओला देवी? ये आत्मचिंतन के विसय आय। देव दानव ले भरे समाज म नारी…

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परतितहा मन पासत हे

मानुख ल अपन मन के आस्था ल प्रकट करे बर कोनो से पुछे के जरूरत नइये। जइसन मन म आवथे तइसन रकम ले अपन सरधा ल भगवान म अरपन करव। काबर की भक्ति ह साधन करे ले मिलथे। सिरिफ इही बात के धियान राखव कि कोनो ह साधन के आड़ म अनहोनी झन करै। एक झन अनहोनी करही त साव उपर घलोक कांव कांव होही इकरे सेती साधन ल सेत होके करिहव त जादा बने रही। आस्था अउ भक्ति ल इज्ञान बिज्ञान कुछु काहय फेर पुजा पाठ धरम करम ह…

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जयंत साहू के गोठ बात : फिल्म सिनेमा एवार्ड बोहागे धारे-धार

छत्तीसगढ़ी सिनेमा म घलो अब पराबेट संस्था समूह डहर ले इनाम बांटे के प्रचलन सुरू होगे। बिते बखत पेपर म पढ़े बर मिलीस की छत्तीसगढ़ी सिने एवार्ड दे जाही। कोन कोन ह सम्मान के हकदार होही तेकर चुनई करे बर जुरी बने हे। जुरी म चुरी पहिनईया मन नही बल्कि पढ़े लिखे कलमकार मन हाबे। ये बात के गम पायेव त मन ल संतोश होइस की निर्णय सही-सही होही। काबर की सही निर्णायक के नइ रेहे ले इनाम ल अपने चिन पहिचान के आदमी ल देके परयास घलो रिथे। कभु…

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नाचे नागिन रेडियो-रेडियो

मैं ओ रेडियो वाला ल पूछेंव- कइसे जी ये रेडियो म का चलत हे अउ ऐला इहां काबर मड़ाय हस। तब रेडियो वाला किथे- ते नइ जानस गा, ये रेडियो में नागिन वाला गाना चलत हे। सांप मन इही गाना में तो नाचत हें। जब तक गाना चलत रही सांप ह नाचत रही। वाह रे केसिट के महिमा आदमी ते आदमी सांप ल घलो नचाय के हिम्मत राखथस। जब ले घर-घर म टीवी, रेडियो आय हे तब ले ये कलाकार मन केसिट म समा गे हाबे। बीस रुपिया के केसिट…

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लोक कथा म ‘दसमत कइना’ के किस्सा

छत्तीसगढ़ म लोक कथा के अनेक रूप देखे ल मिलथे। जेमा प्रेम प्रधान, विरह के वेदना म फिजे लोक कथा, आध्यात्मिक लोक कथा, वीर रस के लोक कथा एकरे संगे संग जनजातीय आधार म घलो कथा के प्रचलन हाबे। अंचल के प्रतिनिधित्व करत ये छत्तीसगढ़ी लोककथा मन आज भी सियान बबा के मुंह ले सुने ल मिलथे। कतकोन लोक कथा ह तो गाथा गायन के रूप म देस विदेस म अपन सोर बगरावथे। लोक कथा ‘दसमत कइना’ घलो अइसने प्रचलित लोक कथा आय जेला गाथा के रूप में घलो बेरा-बेरा…

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जयंत साहू के कहिनी : मनटोरा

चइत बइसाख के महिना तो बर बिहाव के सिजन आय। जेती देखबे तेती गढ़वा बाजा ह बाजत रइथे। किथे न मांग फागुन मे मंगनी जचनीए चइत बइसाख म बर बिहाव अउ काम बुत न उरका के सगा घर लाड़ू बरा बर रतियाव। चडती मंझनीया के बेरा आमा बगइचा के तिरे तिर दु तिन ठन बइला गाड़ी आवत रिहीस। गाड़ी ह गजब सजे धजे रिहीस। बइला के सिंग म चकमकी रंग लगायए पीठ म मखमल के लादना लदाय अउ टोटा म कांसा के बड़े बड़े घांघड़ा पहिराय। टोटा के घांघड़ा अउ…

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माटी के कुरिया

सुख कब पाहू दु घड़ी –दू मंजिला महल भीतर म।थीरा लवं का दाई थोकुन,माटी के कुरिया अउ खदर म।। जाड़ म कपासी मरथवं,घाम म पछनाय परथवं।भिंसरहा के भटकत संझौती आवं,रतिहा चंदैनी के अंजोरी नई पावं।कोनजनी कब का हो जही –निंद गवायेवं इही डर म।थीरा लवं का दाई थोकुन,माटी के कुरिया अउ खदर म।। तेलई म घर के लासा डबकगे,रंग के पोतई तिजौरी खसकगे।सिड़ीया चड़ई म सियनहा बरसगे,गरवा परसार म मेछराय ल तरसगे।काकर बुध म गांव छोड़ी –लघियात आ बसेवं सहर म।थीरा लवं का दाई थोकुन,माटी के कुरिया अउ खदर म।।…

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