चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली। सुनाहूँ तोला, तीतुर, पपीहा के बोली। मेड़ -पार म उगे हवे, रंग – रंग के काँदी। खेत म खेलत हवे, डँड़ई, कोतरी, सराँगी। नाचत हवे रुख राई संग, पँड़री-पँड़री कांसी। कते रुख तरी खाथों, बइठ मैंहा बासी? तँहूँ ला खवाहूँ, मुंग – मुंगेसा ओली-ओली। चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली…………….। मेचका के टर-टर हे, पुरवाही सर-सर हे। मुही के पानी झरे, झर-झर झर-झर हे। भादो बुलकगे, सजोर होगे धान। नाच देथे कई परता, खेतेच म किसान। सँसो – फिकर के, जर जथे होली । चल घुमाहूँ…
Read MoreTag: Jitendra Verma Khairjhitiya
सार छंद
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली। खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा, बढ़े मया बरपेली। रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी, फुगड़ी खो खो माते। खुडुवा खेले फेंके नरियर, होय मया के बाते। भिरभिर भिरभिर भागत हावय, बैंहा जोर सहेली। हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली—-। सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे। नीम डार मुँहटा मा खोंचे, दया मया मिल गारे। घंटी बाजै शंख सुनावय, कुटिया लगे हवेली। हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, आये हवै हरेली-। चन्दन बन्दन पान सुपारी, धरके माई पीला। टँगिया बसुला नाँगर पूजय,…
Read Moreभोले बाबा
डोल डोल के डारा पाना ,भोला के गुण गाथे। गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे। सोमवार के दिन सावन मा,फूल पान सब खोजे। मंदिर मा भगतन जुरियाथे,संझा बिहना रोजे। लाली दसमत स्वेत फूड़हर,केसरिया ता कोनो। दूबी चाँउर दूध छीत के,हाथ ला जोड़े दोनो। बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा काँवर। नाचत गावत मंदिर जाके,घुमथे आँवर भाँवर। बेल पान अउ चना दार धर,चल शिव मंदिर जाबों। माथ नवाबों फूल चढ़ाबों ,मन चाही फल पाबों। लोटा लोटा दूध चढ़ाबों ,लोटा लोटा पानी। भोले बाबा हा सँवारही,सबझन के जिनगानी।…
Read Moreगीत : सावन महीना
सावन आथे त मन मा, उमंग भर जाथे। हरियर हरियर सबो तीर, रंग भर जाथे। बादर ले झरथे, रिमझिम पानी। जुड़ाथे जिया, खिलथे जिनगानी। मेंवा मिठाई, अंगाकर अउ चीला। करथे झड़ी त, खाथे माई पिला। खुलकूद लइका मन, मतंग घर जाथे। सावन आथे त मन मा….. । भर जाथे तरिया, नँदिया डबरा डोली। मन ला लुभाथे, झिंगरा मेचका बोली। खेती किसानी, अड़बड़ माते रहिथे। पुरवाही घलो, मतंग होके बहिथे। हँसी खुसी के जिया मा, तरंग भर जाथे। सावन आथे त मन मा….. । होथे जी हरेली ले, मुहतुर तिहार। सावन…
Read Moreगीत : जिनगी के गाड़ा
जिनगी के गाड़ा ल, अकेल्ला कइसे तिरौं। उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं। काया के पाठा, पक्ति पटनी ढिल्ला। बेरा हा कोचे, तुतारी धर चिल्ला। धरसा मा भरका, काँटा खूँटी हे। बहरावत नइ हे, बाहरी ठूँठी हे। गर्मी म टघलौं, त बरसा म घिरौं——। उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा मैं गिरौं। भारा बिपत के , भराये हे भारी। दुरिहा बियारा , दुरिहा घर बारी। जिम्मेवारी के जूँड़ा म, खाँध खियागे। बेरा बड़ बियापे , घर बन सुन्ना लागे। हरहा होके इती उती, भटकत फिरौं—। उल्ला धुरहा हवै रे, मुड़भसरा…
Read Moreगजल : कतको हे
भाई भाई ल,लड़इय्या कतको हे। मीत मया ल, खँड़इय्या कतको हे। लिगरी लगाये बिन पेट नइ भरे, रद्दा म खँचका करइय्या कतको हे। हाथ ले छूटे नही,चार आना घलो, फोकट के धन,धरइय्या कतको हे। रोपे बर रूख,रोज रोजना धर लेथे, बाढ़े पेड़ पात ल,चरइय्या कतको हे। जात – पात भेस म,छुटगे देश, स्वारथ बर मरइय्या कतको हे। दूध दुहइय्या कोई,दिखे घलो नहीं, फेर दुहना ल,भरइय्या कतको हे। पलइया पोंसइया सिरिफ दाई ददा, मरे म,खन के,गड़इय्या कतको हे। जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” बाल्को(कोरबा)
Read Moreदेखे हँव
बद ले बदतर हाल देखे हँव। काट के करत देखभाल देखे हँव। शेर भालू हाथी डरके भागे बन ले, गदहा ल ओढ़े बघवा खाल देखे हँव। काखर जिया म जघा हे पर बर बता, अपन मन ल फेकत जाल देखे हँव। जीयत जीव जंतु जरगे मरगे सरगे, बूत बैनर टुटे फुटे म बवाल देखे हँव। सेवा सत्कार करे म मरे सब सरम, चाटुकारिता म कदम ताल देखे हँव। काखर उप्पर करके भरोसा चलँव, चारो मुड़ा म पइधे दलाल देखे हँव। भाजी पाला कस होगे कुकरी मछरी, मनखे घलो ल होवत…
Read Moreमानसून
तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून। मया करथों मैं तोला,रे घात मानसून। का पैरा भूँसा अउ का छेना लकड़ी। सबो चीज धरागे रीता होगे बखरी। झिपारी बँधागे , देवागे पँदोली। काँद काँटा हिटगे,चातर हे डोली। तोर नाम रटत रहिथों,दिन रात मानसून। तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून—–। तावा कस तीपे हे,धरती के कोरा। फुतका उड़त हे , चलत हे बँरोड़ा। चितियाय पड़े हे,जीव जंतु बिरवा। कुँवा तरिया रोये,पानी हे निरवा। पियास मरत हे,डारपात मानसून। तैं आबे त बनही,मोर बात मानसून। झउँहा म जोरागेहे ,रापा कुदारी। बीज भात घलो,जोहे अपन बारी।…
Read Moreगर्मी छुट्टी (रोला छंद)
बन्द हवे इस्कूल,जुरे सब लइका मन जी। बाढ़य कतको घाम,तभो घूमै बनबन जी। मजा उड़ावै घूम,खार बखरी अउ बारी। खेले खाये खूब,पटे सबके बड़ तारी। किंजरे धरके खाँध,सबो साथी अउ संगी। लगे जेठ बइसाख,मजा लेवय सतरंगी। पासा कभू ढुलाय,कभू राजा अउ रानी। मिलके खेले खेल,कहे मधुरस कस बानी। लउठी पथरा फेक,गिरावै अमली मिलके। अमरे आमा जाम,अँकोसी मा कमचिल के। धरके डॅगनी हाथ,चढ़े सब बिरवा मा जी। कोसा लासा हेर ,खाय रँग रँग के खाजी। घूमय खारे खार,नहावय नँदिया नरवा। तँउरे ताल मतंग,जरे जब जब जी तरवा। आमाअमली तोड़,खाय जी नून…
Read Moreवीर महाराणा प्रताप : आल्हा छंद
जेठ अँजोरी मई महीना,नाचै गावै गा मेवाड़। बज्र शरीर म बालक जन्मे,काया दिखे माँस ना हाड़। उगे उदयसिंह के घर सूरज,जागे जयवंता के भाग। राजपाठ के बने पुजारी,बैरी मन बर बिखहर नाग। अरावली पर्वत सँग खेले,उसने काया पाय विसाल। हे हजार हाथी के ताकत,धरे हाथ मा भारी भाल। सूरज सहीं खुदे हे राजा,अउ संगी हेआगी देव। चेतक मा चढ़के जब गरजे,डगमग डोले बैरी नेव। खेवन हार बने वो सबके,होवय जग मा जय जयकार। मुगल राज सिंघासन डोले,देखे अकबर मुँह ला फार। चले चाल अकबर तब भारी,हल्दी घाटी युद्ध रचाय। राजपूत…
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