जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया के मत्तगयंद सवैया

(1) तोर सहीं नइहे सँग मा मन तैंहर रे हितवा सँगवारी। तोर हँसे हँसथौं बड़ मैहर रोथस आँख झरे तब भारी। देखँव रे सपना पँढ़री पँढ़री पड़ पाय कभू झन कारी। मोर बने सबके सबके सँग दूसर के झन तैं कर चारी। (2) हाँसत हाँसत हेर सबे,मन तोर जतेक विकार भराये। जे दिन ले रहिथे मन मा बड़ वो दिन ले रहिके तड़फाये। के दिन बोह धरे रहिबे कब बोर दिही तन कोन बचाये। बाँट मया सबके सबला मन मंदिर मा मत मोह समाये। (3) कोन जनी कइसे चलही बरसे…

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किरीट सवैया : पीतर

काखर पेट भरे नइ जानँव पीतर भात बने घर हावय। पास परोस सगा अउ सोदर ऊसर पूसर के बड़ खावय। खूब बने ग बरा भजिया सँग खीर पुड़ी बड़ गा मन भावय। खेवन खेवन जेवन झेलय लोग सबे झन आवय जावय। आय हवे घर मा पुरखा मन आदर खूब ग होवन लागय। भूत घलो पुरखा मनखे बड़ आदर देख ग रोवन लागय। जीयत जीत सके नइ गा मन झूठ मया बस बोवन लागय। पाप करे तड़फाय सियान ल देख उही ल ग धोवन लागय। पीतर भोग ल तोर लिही जब…

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किरीट सवैया : कपूत नहीं सपूत बनो

देखव ए जुग के लइका मन हावय अब्बड़ हे बदमास ग। बात कहाँ सुनथे कखरो बस दाँत निपोरय ओ मन हाँस ग। मान करे कखरो नइ जानय होवत हे मति हा अब नास ग। संगत साथ घलो बिगड़े बड़ दाइ ददा रख पाय न आस ग। पूत सपूत कहूँ मिल जातिस नैन नसीब म काबर रोतिस। राम सहीं लइका हर होतिस दाइ ददा नइ लाँघन सोतिस। जानत होतिस दाइ ददा तब फोकट बन ला काबर बोतिस। नाँव बुझावँव जे कुल के तब ओखर भार ला काबर ढोतिस। आस धरे बड़…

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मत्तगयंद सवैया : किसन के मथुरा जाना

आय हवे अकरूर धरे रथ जावत हे मथुरा ग मुरारी। मात यशोमति नंद ह रोवय रोवय गाय गरू नर नारी। बाढ़त हे जमुना जल हा जब नैनन नीर झरे बड़ भारी। थाम जिया बस नाम पुकारय हाथ धरे सब आरति थारी। कोन ददा अउ दाइ भला अपने सुत दे बर होवय राजी। जाय चिराय जिया सबके जब छोड़ चले हरि गोकुल ला जी। गोप गुवालिन संग सखा सब काहत हावय जावव ना जी। हाल कहौं कइसे मुख ले दिखथे बिन जान यशोमति माँ जी। गोकुल मा नइ गोरस हे अब…

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जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : करम

करम सार हावय इँहा, जेखर हे दू भेद। बने करम ला राख लौ, गिनहा ला दे खेद। बिना करम के फल कहाँ, मिलथे मानुष सोच। बने करम करते रहा, बिना करे संकोच। करे करम हरदम बने, जाने जेहर मोल। जिनगी ला सार्थक करे, बोले बढ़िया बोल। करम करे जेहर बने, ओखर बगरे नाम। करम बनावय भाग ला, करम करे बदनाम। करम मान नाँगर जुड़ा, सत के बइला फाँद। छीच मया ला खेत भर, खन इरसा कस काँद। काया बर करले करम, करम हवे जग सार। जीत करम ले हे मिले,…

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जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : ज्ञान

ज्ञान रहे ले साथ मा, बाढ़य जग मा शान। माथ ऊँचा हरदम रहे, मिले बने सम्मान। बोह भले सिर ज्ञान ला, माया मोह उतार। आघू मा जी ज्ञान के, धन बल जाथे हार। लोभ मोह बर फोकटे, झन कर जादा हाय। बड़े बड़े धनवान मन, खोजत फिरथे राय। ज्ञान मिले सत के बने, जिनगी तब मुस्काय। आफत बेरा मा सबे, ज्ञान काम बड़ आय। विनय मिले बड़ ज्ञान ले, मोह ले अहंकार। ज्ञान जीत के मंत्र ए, मोह हरे खुद हार। गुरुपद पारस ताय जी, लोहा होवय सोन। जावय नइ…

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जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : नसा

दूध पियइया बेटवा, ढोंके आज शराब। बोरे तनमन ला अपन, सब बर बने खराब। सुनता बाँट तिहार मा, झन पी गाँजा मंद। जादा लाहो लेव झन, जिनगी हावय चंद। नसा करइया हे अबड़, बढ़ गेहे अपराध। छोड़व मउहा मंद ला, झनकर एखर साध। दरुहा गँजहा मंदहा, का का नइ कहिलाय। पी खाके उंडे परे, कोनो हा नइ भाय। गाँजा चरस अफीम मा, काबर गय तैं डूब। जिनगी हो जाही नरक, रोबे बाबू खूब। फइसन कह सिगरेट ला, पीयत आय न लाज। खेस खेस बड़ खाँसबे, बिगड़ जही सब काज। गुटका…

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अब का पोरा-जाँता जी ?

अब का पोरा जाँता जी? ठाढे़ अँकाल के मारे, होगेव चउदा बाँटा जी | अब का पोरा जाँता जी। सपना ल दर-दर जाँता म, कब तक मन ल बाँधव ? चांउर-दार पिसान नइहे, का कलेवा राँधव ? भभकत मँहगाई म, अलथी कलथी भुंजात हौ | भात- बासी ल तको, चटनी कस खात हौ | उबके हे लोर तन भर, पड़े हे गाल म चाँटा जी….| अब का पोरा जाँता जी….? सिरतोन के बइला भूख मरे, का जिनिस खवाहूं | माटी के बइला बनाके, अब का करम ठठाहूं | किसान अउ…

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मैं वीर जंगल के : आल्हा छंद

झरथे झरना झरझर झरझर,पुरवाही मा नाचे पात। ऊँच ऊँच बड़ पेड़ खड़े हे,कटथे जिंहा मोर दिन रात। पाना डारा काँदा कूसा, हरे हमर मेवा मिष्ठान। जंगल झाड़ी ठियाँ ठिकाना,लगथे मोला सरग समान। कोसा लासा मधुरस चाही,नइ चाही मोला धन सोन। तेंदू पाना चार चिरौंजी,संगी मोर साल सइगोन। घर के बाहिर हाथी घूमे,बघवा भलवा बड़ गुर्राय। आँखी फाड़े चील देखथे,लगे काखरो मोला हाय। छोट मोट दुख मा घबराके,जिवरा नइ जावै गा काँप। रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप। लड़े काल ले करिया काया,सूरुज मारे कइसे बान। झुँझकुर…

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छत्तीसगढ़ के वीर बेटा – आल्हा छंद

महतारी के रक्षा खातिर,धरे हवँव मैं मन मा रेंध। खड़े हवँव मैं छाती ताने,बइरी मारे कइसे सेंध। मोला झन तैं छोट समझबे,अपन राज के मैंहा वीर। अब्बड़ ताकत बाँह भरे हे , रख देहूँ बइरी ला चीर। तन ला मोर करे लोहाटी ,पसिया चटनी बासी नून। बइरी मन ला देख देख के,बड़ उफान मारे गा खून। नाँगर मूठ कुदारी धरधर , पथना कस होगे हे हाथ। अबड़ जबर कतको हरहा ला,पहिराये हँव मैंहा नाथ। कते खेत के तैं मुरई रे, ते का लेबे मोला जीत। परही मुटका कसके तोला,छिन मा…

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