कान्हा मोला बनादे : सार छंद

पाँख मयूँरा मूड़ चढ़ादे,काजर गाल लगादे| हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे | बाँध कमर मा करधन मोरे,बाँध मूड़ मा पागा| हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा| चंदन टीका माथ लगादे ,ले दे माला मूँदी| फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चूँदी| हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली | घींव लेवना चाँट चाँट के,खाहूँ थाली थाली | दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी बइठ बजाहूँ| तेंदू लउड़ी हाथ थमादे,गाय चराके आहूँ| महानदी पैरी जस यमुना ,कदम्ब कस बर पीपर | गोकुल कस सब गाँव गली हे…

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भोले बाबा : सार छंद

डोल डोल के डारा पाना ,भोला के गुन गाथे। गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे। सोमवार के दिन सावन मा,फूल दूब सब खोजे। मंदिर मा भगतन जुरियाथे,संझा बिहना रोजे। कोनो धरे फूल दसमत के ,केसरिया ला कोनो। दूबी चाँउर छीत छीत के,हाथ ला जोड़े दोनो। बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा काँवर। भोला के मंदिर मा जाके,घूमय आँवर भाँवर। बेल पान अउ चना दार धर,चल शिव मंदिर जाबों। माथ नवाबों फूल चढ़ाबों ,मन चाही फल पाबों। लोटा लोटा दूध चढ़ाबों ,लोटा लोटा पानी। सँवारही भोले बाबा…

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सहे नहीं मितान

घाम जाड़ असाड़ मा,सेहत के गरी लहे नही मितान। खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,अब सहे नहीं मितान। बासी पेज चटनी मोर बर, अब नाम के होगे हे। खाना मा दू ठन रोटी सुबे,अउ दू ठन साम के होंगे हे। उँच नीच खाये पीये मा, हो जाथे अनपचक। कूदई ल का कहँव,रेंगई मा जाथे हाथ गोड़ लचक। जुड़ घाम मा जादा झन,जायेल केहे हे। गरम गरम बने पके चीज,खायेल केहे हे। धरे हौं डॉक्टर ,चलत हे रोज इलाज। बस बीते बेरा ल,सोचत रहिथों आज। एक कन रेंगे मा,जाँगर थक जाथे। सुस्ती…

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सावन बइरी (सार छंद)

चमक चमक के गरज गरज के, बरस बरस के आथे। बादर बइरी सावन महिना, मोला बड़ बिजराथे। काटे नहीं कटे दिन रतिहा, छिन छिन लगथे भारी। सुरुर सुरुर चलके पुरवइया, देथे मोला गारी। रहि रहि के रोवावत रहिथे, बइरी सावन आके। हाँस हाँस के नाचत रहिथे, डार पान बिजराके। पूरा छंद ये कड़ी म पढ़व..

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खुमरी : सरसी छंद

बबा बनाये खुमरी घर मा,काट काट के बाँस। झिमिर झिमिर जब बरसे पानी,मूड़ मड़ाये हाँस। ओढ़े खुमरी करे बिसासी,नाँगर बइला फाँद। खेत खार ला घूमे मन भर,हेरे दूबी काँद। खुमरी ओढ़े चरवाहा हा, बँसुरी गजब बजाय। बरदी के सब गाय गरू ला,लानय खार चराय। छोट मँझोलन बड़का खुमरी,कई किसम के होय। पानी बादर के दिन मा सब,ओढ़े काम सिधोय। धीरे धीरे कम होवत हे,खुमरी के अब माँग। रेनकोट सब पहिरे घूमे, कोनो छत्ता टाँग। खुमरी मोरा के दिन गय अब,होवत हे बस बात। खुमरी मोरा मा असाड़ के,कटे नहीं दिन…

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योग के दोहा

महिमा भारी योग के,करे रोग सब दूर। जेहर थोरिक ध्यान दे,नफा पाय भरपूर। थोरिक समय निकाल के,बइठव आँखी मूंद। योग ध्यान तन बर हवे,सँच मा अमरित बूंद। योग हरे जी साधना,साधे फल बड़ पाय। कतको दरद विकार ला,तन ले दूर भगाय। बइठव पलथी मार के,लेवव छोंड़व स्वॉस। राखव मन ला बाँध के,नवा जगावव आस। सबले बड़े मसीन तन,नितदिन करलव योग। तन ले दुरिहा भागही,बड़े बड़े सब रोग। चलव साथ एखर सबे,सखा योग ला मान। स्वस्थ रही तन मन तभे,करलव योगा ध्यान। जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” बाल्को (कोरबा)

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मजबूर मैं मजदूर

करहूँ का धन जोड़,मोर तो धन जाँगर ए। गैंती रापा संग , मोर साथी नाँगर ए। मोर गढ़े मीनार,देख लमरे बादर ला। मिहीं धरे हौं नेंव,पूछ लेना हर घर ला। भुँइयाँ ला मैं कोड़, ओगथँव पानी जी। जाँगर रोजे पेर,धरा करथौं धानी जी। बाँधे हवौं समुंद,कुँआ नदियाँ अउ नाला। बूता ले दिन रात,हाथ उबके हे छाला। सच मा हौं मजबूर,रोज महिनत कर करके। बिगड़े हे तकदीर,ठिकाना नइ हे घर के। थोरिक सुख आ जाय,बिधाता मोरो आँगन। महूँ पेट भर खाँव, पड़े हावँव बस लाँघन। घाम जाड़ आसाड़, कभू नइ सुरतावँव…

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महतारी दिवस विशेष : दाई

दाई (चौपई छंद) दाई ले बढ़के हे कोन। दाई बिन नइ जग सिरतोन। जतने घर बन लइका लोग। दुख पीरा ला चुप्पे भोग। बिहना रोजे पहिली जाग। गढ़थे दाई सबके भाग। सबले आखिर दाई सोय। नींद घलो पूरा नइ होय। चूल्हा चौका चमकय खोर। राखे दाई ममता घोर। चिक्कन चाँदुर चारो ओर। महके अँगना अउ घर खोर। सबले बड़े हवै बरदान। लइका बर गा गोरस पान। चुपरे काजर पउडर तेल। तब लइका खेले बड़ खेल। कुरथा कपड़ा राखे कॉच। ताहन पहिरे सबझन हाँस। चंदा मामा दाई तीर। रांधे रोटी रांधे…

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