हे अमीर मन के आनन्ददाता भगवान लाख-लाख पैलगी आसा हे के तुमन क्षीरसागर मा बने मंजा के सुते होहू अउ लछमी माता हर तुंहर चरणारबिन्दु ला हलु-हलु चपकत होहीं। तेखरे सेती ये मिरतुलोक मा का का अनियाव होवत हे तेखर तुंहला थोरको आरो नई हे। देवर्षि नारद घलो के तमूरा सुनई नई देवत हे, कोन जनी उहू कोनो ठऊर मा सुस्तावत होहीं। नहिं तो, ओ हर पृथ्वी लोक के कहूं चक्कर लगातीन, अऊ कहूं इहां के हाल तुंहला बतातीन त तुमन अभी तक कई खेप ये धरती मा अधरम के…
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जन आन्दोलन के गरेर
पापी दुस्ट आत्मा मन के नास करे बर, धरम के रक्षा करे खातिर बर बड़े-बड़े रिसी मुनि, गियानी-धियानी, बखत-बखत मा आगू अईन हे। भगवान राम के गुरु विश्वामित्र, चन्द्रगुप्त के गुरु चाणक्य, शिवाजी के गुरु रामदास, आनंद मठ के सन्यासी जइसे उदाहरन ले इतिहास भरे पड़े हे। गुरु सऊंहत राज नई करय फेर पापी, राक्छस मन के नास करे बर बीर पुरुष मन ला तियार करथे। उन ला प्रेरना देथे। वर्मा:- कइसे जी मिश्रा जी! ये मिस्र मा का होगे जी? मिश्रा:- उही जऊन अब हमरो देस मा घलो होके…
Read Moreआन के तान
संगी हो! आजकाल मोला एक ठिक जबड़ भारी रोग हो गे हे। रोग का होय हे, मोर जीव के काल हो गे हे। रोग ये हे के मैं हर, आन कहत-कहत तान कहि पारथां, कोनो आन कहिथें त मैं हर तान समझ पारथों। पाछू, आठ महीना ले मोर कनिहा मा पीरा ऊचे लग गे। सोचेंव लापरवाही बने नोहय। कोनो डॉक्टर ला देखई देत हों। एक झिक कोन्टा-छाप डॉक्टर करा गेंव। देखथों ओकर नाक हर आलूगुण्डा कस फूले रहय। मैं सोंचेव जब ये हर अपने ‘नाक’ नई ओसका सकत हे त…
Read Moreबियंग : पारसद ला फदल्लाराम के फोन
जय हो छत्तीसगढ़ महतारी। हम गरीब मन ऊपर तोर अइसने छइंहा रहय दाई। हमर छत्तीसगढ़ के गरीब मन अइसे-वइसे नो हंय पारसद जी। वो मन उसना चाउंर ल उहुंचे कंट्रोल वाले ल बेच देथे। कन्ट्रोल मालिक के घलो पौ बारा। हां हलो… कोन… पारसद जी? हां, मैं फदल्ला राम बोलत हों। अरे नहीं… जदल्ला राम नहीं, फदल्लाराम बोलत हों-फदल्लाराम। का करवं पारसद जी। दाई-ददा मन तो बने ‘गनेस’ नाम राखे रहिन हें। फेर मैं थोरिक मोटा का गेंव, मोर नाम फदल्लाराम धरागे। अब मोर जुन्ना नाम हर तोपागे। अब ‘गनेस’…
Read Moreलोक कला के दीवाना रामकुमार साहू
ओ हर निचट गरीब परवार के रहीस। मोर इसकूल मा पढ़य। आज लइका मन ले ओ हर अलगेच रहीस हे। नानपन ले ओहर ‘लोककला’ के दीवान रहीस हे। ओ बखत मैं हर स्व. दाऊ रामचन्द्र देशमुख के जबड़ लोकनाटक ‘कारी’ मा बिसेसर नायक के पाठ करत रहेंव तब ‘कारी’ खातिर रामकुमार साहू के दीवानगी हर मोला चकित कर देवय। ओला ये खभर मिलतीस के फलाना जघा कारी होवत हे। तब ओहर कइसनो करके ऊंहा हबरी जातीस। पोझिटया कला, दुर्ग निवासी रामकुमार ला एक घंव पता चलीस के ग्राम पैरी मा…
Read Moreलोक मंच के चितेरा
दाऊ रामचन्द्र देशमुख हर रामहृदय तिवारी जी के निर्देसन मा बनइस ‘कारी’ जगमग-जगमग बरत छत्तीसगढ़ मूल्य मन के लड़ी अउ सुख:दु:ख के झड़ी ‘कारी’। बिराट लोक नाटय ‘कारी’। ये नाटक हर छत्तीसगढ़ के जनता ला एक घांव फेर भाव के संसार मा चिभोर दिस। ह मर छत्तीसगढ़िया के जग-परसिध ‘नाचा’ हर जन-जागरन अउ मन बहलाव के सबले जादा लोकप्रिय बिद्या अउ सबले पोठ माधियम आय। फेर आज ले पचास एक बछर पहिली ये ‘नाचा’ मा भारी खरापी आ गए रिहिस हे। कलाकार मन, लोक मरजाद ला तियाग के फूहरपाती, दूअरथी…
Read Moreमोर लीलावती के लीला
कहां बोचक के जाबे तें। डोंगरी-पहाड़, अलीन-गलीन, जिहां हाबे, तिहां ले खोज के निकालिहौं। सात तरिया में बांस डारूंगा। केकंरा और मुसुवा के बिला मं हाथ डारहूं। अइसे काहत बइहाय गदहा कस किंजरे लगेंव। हुरहा पोस्टमेन हर, भकाड़ूराम चऊंक मा, अभरा तो गे। मैं आंखी छटकावत बिजली कस लउकेंव- ‘कस रे बईमान। तोर माथा मा फोरा परय। ते मनीआर्डर के पइसा ला कहां करथस, सच-सच बता।’ ओ दिन मोर संगवारी संजीव तिवारी संग भेंट होगे। देख के मैं अचरित रहिगेंव। मे केहेंव- ‘कइसे तिवारी जी! आजकल कइसे फुन्नाय-फुन्नाय, हरियर-हरियर दिखत…
Read Moreपारसद ल प्रार्थना पत्र
विषय- गरीबी रेखा कारड बचाए बर। सेवा में, सिरीमान बोट-बटोरू पारसद जी! वार्ड-00 गरीब पालिका निगम झोलगापुर। प्रजापालक सादर सनम्र निवेदन हावै कि आपके आसीरवाद से बने फरत-फूलत हों। आशा हे आपो भोग-भोग ले फूल गै होहू। आगे समाचार जानौ के आप जऊन मोर बर गरीबी रेखा कारड बनवाय हावव ओला खतरा हो गेहे। अब तक बने मैं हर अपन उपजाय धान ला एक हजार एक सौ सत्तर रुपिया मा बेंच के, गरीबी रेखा वाले पैंतीस किलो महीना चाऊर, दू रुपिया के हिसाब से बने लेत रहेंव। अउ ओला खा-खा…
Read Moreकहिनी – ऊलांडबाटी खेले के जुगाड़
जहां टूरा हर राजनीति म पांव धरही तहां बइठे के, सूते के, ऊलांडबाटी खेले के, सबके जुगाड़ जम जाही। दसवीं पढ़े हे कहिके कोन्हो ला झन बताबे। तहां बिधान सभा अऊ लोकसभा के रस्ता घलो खुल जाही। मोर गुड्डू हर दसमी किलास मा दू बछर फैल का हो गीस, ओकर अनदेखनहा गुरूजी मन ओला डेनिया के इस्कूल ले निकाल दिन। में केहेंव-‘कस गुरूजी हो! अरे लइका हर अपन नेंव मजबूत करना चाहत हे त तुमन काबर ओकर संकल्प के बध करत हव? लइका हर एक किलास मा जतके जादा गियान…
Read Moreनेताजी ल भकाड़ूराम के चिट्ठी
परम सकलकरमी नेता जी राम-राम अरे! मैं तो फोकटे-फोकट म आप मन ल राम-राम लिख पारेंव। आप मन तो राम ल मानबे नई करव। राम-रावन युद्ध ल घलो नई मानव। तेखरे सेथी येहू ल नई मानव के ‘रामसेतु’ ल राम हर बनवाय रहीस। तुमन तो ये मानथव के रमायेन हर सिरिफ एकठन ‘साहित्य’ आय। कोनों परलोखिया बिधर्मी मन तुम ल अइसने हे बोलीन अऊ तुमन मान गेव नेताजी? खुरसी खातिर न? परदेसिया मन ला खुस करे खातिर, पइसा बनाय खातिर, ये सब खातिर। तब फेर ये जनता के आस्था का…
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