आतंकवादी खड़ुवा

पाकिस्तान मा चार झन आतंकवादी मन गोठियात रहंय। पहला- ‘अरे भोकवा गतर के। अभी हिन्दुस्तान म हमला करे बर अफगानिस्तान अऊ पाकिस्तान ले घलो जादा बढ़िया माहौल हावय।’ दूसरा- ‘कइसे?’ तीसरा- ‘हत रे बैजड़हा! तोला कोन हमर भीर मा भरती कर दीस रे? ओतको ला नई जानस? अरे! भारत के नेता मन मा अभी फकत बड़बोलापन हावय। हमर ले लड़े के कूबत नई हे। उन तो आपस मा लड़त हावयं। हम सब आतंकवादी एकजुट हावन, अऊ ओ मन? ओ मन जतेक पारटी, जतके नेता, ओतके गुट, ओतके विचार। हमन बारूद…

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झन-झपा

ओ दिन मैं हा अपन जम्मो देवता-धामी मन ला सुमरत-सुमरत, कांपत-कुपांत फटफटी ला चलात जात रहेंव। कइसे नई कांपिहौं? आजकाल सड़क म जऊन किसीम ले मोटर-गाड़ी चलत हावय, ओला देख-देख के पलई कांपे लागथे। आज कोन जनी, कोन दिन, कोन करा, कतका बेरा, रोडे ऊपर सरगबासी हो जाबो तेकर कोनो ठिकाना नई हे। आज लोगन मन करा, मोटर बिसाय के ताकत तो हो गे हे। फेर ओला ठाढ़ करे के ठऊर नई हे, ऊंखर मेर। त ओ मन सरकारी रोड अऊ गली मन ला अपन ‘बूढ़ी दाई’ के मिल्कियत समझ…

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