कामेश्वर पाण्डेय ‘कुस’ का बड़बड़ाइस, भीड़ के हल्ला-गुल्ला मं समझ मं नइ आइस। नवटपा के ओहरत सुरुज हर खिड़की मं ले गोंड़ जी के डेरी कनपटी लऽ तमतमावऽथे। भीड़ के मारे सीट मं बइठइया सवारी घलउ मन के जी हलकान हे। देंव हर ओनहा-कपड़ा के भीतर उसनाए कस लगऽथे। ऊपर ले पंखो हर गर्राटेदार तफर्रा लऽ फेंकऽथे। मनखे के मुँह बार-बार सुखावऽथे। कतको झन के दिमाग तो टन्न-टन्न करऽथे। डब्बा हर कोचकिच ले भर गै हे। सीट मं तो खूब करके रिजर्वेसन वाला मद्रासीच मन बइठे हें। छत्तीसगढिय़ा मन बर तमिल, तेलगु, कन्नड़,…
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तॅुंहर जाए ले गिंयॉं
तॅुंहर जाए ले गिंयॉं श्री कामेश्वर पांडेय जी द्वारा लिखित आधुनिक छत्तीसगढ़ की स्थिति का जीवंत चित्रण तो है ही, संघर्ष की राह तलाशते आम आदमी की अस्मिता के अन्वेषण की आधारशिला भी है। इसे छत्तीसगढ़ की अस्मिता पर लिखित और ‘हीरू के कहिनी’ के बाद प्रस्तुत 21वीँ सदी का श्रेष्ठ औपन्यासिक साहित्य भी कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र श्री कामेश्वर पांडे पिछले 10 वर्षोँ से लगातार श्रम और शोध के द्वारा इसे परिष्कृत—परिमार्जित करते हुए अब प्रकाशन के लिए तैयार हुए है। उपन्यास मे जहाँ छत्तीसगढ़ी…
Read More‘तुंहर जाय ले गीयां’
कामेश्वर पाण्डेय के छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘तुंहर जाए ले गीयां’ 270 पृष्ठ म लिखाय हावय। येखर कहिनी ह छोटे-छोटे 42 खण्ड म बंटाय हावय। हर कहिनी जीवंत आंखी के आगू म घटत दिखथे। बड़े कका मुख्य पात्र ह बहुत संवेदनसील हावय। हरेक के दु:ख-पीरा के एहसास ल करथे। आज के बेरा म जानवर के प्रति परेम ह पाठक ल सोचे बर विवश करही के पसु घलो मनखे सरीख हे। ओला दाना-पानी देना, ओखर जोखा करना अउ माछी झूमत घाव म नीम तेल ल लगाय बर कहना। एक सियान के पीरा के…
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