साहित्यिक पुरखा के सुरता – कपिलनाथ मिश्र

दुलहा हर तो दुलहिन पाइस बाम्हन पाइस टक्का सबै बराती बरा सोंहारी समधी धक्कम धक्का । नाऊ बजनिया दोऊ झगरै नेंग चुका दा पक्का पास मा एक्को कौड़ी नइये समधी हक्का बक्का । काढ़ मूस के ब्याह करायों गांठी सुक्खम सुक्खा सादी नइ बरबादी भइगे घर मा फुक्कम फुक्का । पूँजी रह तो सबे गँवा गे अब काकर मूं तक्का टुटहा गाड़ा एक बचे हे वोकरो नइये चक्का । लागा दिन दिन बाढ़त जाथे साव लगावे धक्का दिन दुकाल ऐसन लागे हे खेत परे हे सुक्खा। लोटिया थारी सबो बेंचागे…

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