(सुरता ‘मरहा’ के) अवसान दिवस 10-09-2011 बिना पढ़े-लिखे अउ बिना लिखित संग्रह के अनगिनत रचना मुंह अखरा होना बड़ अचरज के बात आए। येला माता सरसती के किरपा अउ कवि के लगन, त्याग-तपसिया अउ साधना के परिनाम केहे जही मंच मं खड़ा होके सरलग 8-10 घंटा कविता पाठ करना कउनो हांसी-ठट्ठा नो हे। फेर ‘मरहा’ जी हा ये रिकार्ड बनइस तहां ले कई जघा ‘मरहा’ नाइट के आयोजन घलो करे गिस। बच्छर के 365 दिन मा 300 दिन कवि सम्मेलन के मंच मा रहय। ‘मरहा’ जी हा कतको धारमिक, अध्यात्मिक…
Read MoreTag: Keshaw Ram Sahu
नान्हे कहिनी : आवस्यकता
जब ले सुने रहिस,रामलाल के तन-मन म भुरी बरत रहिस। मार डरौं के मर जांव अइसे लगत रहिस। नामी आदमीं बर बदनामी घुट-घुट के मरना जस लगथे। घर पहुंचते साठ दुआरीच ले चिल्लाईस ‘‘ललिता! ये ललिता!‘‘ ललिता अपन कुरिया मं पढ़त रहिस। अंधर-झंवर अपन पुस्तक ल मंढ़ाके निकलिस। ‘‘हं पापा!‘‘ ओखर पापा के चेहरा, एक जमाना म रावन ह अपन भाई बिभिसन बर गुसियाए रहिस होही, तइसने बिकराल दिखत रहिस। दारू ओखर जीभ मं सरस्वती जस बिराजे रहिस अउ आंखी म आगी जस। कटकटावत बोलिस ‘‘मैं ये का सुनत हौं…
Read Moreसमे-समे के बात
बदलाव होवत रहिथे संगी, जिनगी के सफर म, कोनों धोका म झन रहै, बपौती के,न अकड़ म। काल महुँ बइठे रहेंव सीट म, संगी,आज खड़े हौं, कोनों बइठे हे आज, त झन सोचै, के मैं फलाने ले बड़े हौं। केजवा राम साहू ‘तेजनाथ’ बरदुली, कबीरधाम, छ ग. 7999385846
Read More