कहिनी : फंदी बेंदरा

सतजुगहा किस्सा ये, ओ पइत मनखे जनावर अउ चिरई-चिरगुन, सांप डेंड़ू, सबे मन एक दूसर के भाखा ओखरे बर जानंय। अपन अपन रीत रद्दा म चलयं। एक दूसर के सुख-दुख म ठाड़ होवय। सबे बर अपन भाखा हर सबले आगर अउ ओग्गर माने जावय। भाखा अउ किरिया तो जियई-मरई के ताग माने जावय। तभो ले कतकोन नवटिप्पा लंदी-फंदी घला राहंय। उही जुग म एक ठन जंगल मं लंदी-फंदी बेंदरा राहय। नांव कबे ते भुस्क वोहर आनी-बानी के हाना, ठिठोली, जनउला, चाखना अऊ ठोली-बोली ल अकताहा राहय। जौन एक बेर ओकर…

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लोक कहिनी : ठोली बोली

छकड़ा भर खार पीये के जिनिस देख के सबे गांव वाला मन पनछाय धर लिन कब चूरय त कब सपेटन। ए क ठन गांव म नाऊ राहय। बड़ चतुरा अऊ चड़बांक। तइहा पइंत के कंथ ली आय। जाने ले तुंहरेच नी जाने ले तुंहरेच, गांव भर के हक-हुन्नर, मगनी, बरनी, छट्ठी, बरही अऊ कोनो घला चरझनियां बुता बर छड़ीदार राहय। घरो-घर नेवता जोहारे अऊ ओट्टिंट (आघात) ले झारे-झार जेवन सपेटे। अक तहा घला झोंकावय। घर लेगय। ओकरो घर एक झन टूरा पिला होइस। त कोनो-कोनो ओलियांय। ‘कइसे मर्दनिया तै सबके…

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बाल कहिनी : अइसे धरिन चोर गोहड़ी

बाल कहिनी सबो चोरी ओतके बेर होथे, जतका बेर मनखे घर ले बाहिर रथे। ओहर घातेच बिचारिस त सुध आईस, जमे चोरी मं कोनो अवइया-जवइया नइते अइसे मनखे के हात हे, जेहर घर वाला मन के अवई-जवई ला जानथे। तहांले राहुल हर अपन जहुंरिया रमेश अउ वीरेश ल संघेरिस अउ किहिस हमला चोरहा मनके चिन्हारी करके, कुछु उदीम करना हे। वहू दूनो झक चोरी चपटी ले बगियाय राहंय। डॉ. राउत संझा कुन अपन सुवारी सन किंजरे बर निकलिन। घंटा भर मं लहुटिन ते खोर मुहांटी के तारा टूटे राहय। देख…

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सरग सुख : कहिनी

मुकुल के जीव फनफनागे। अल्थी-कल्थी लेवत सोचिस, अलकरहा फांदा म फंदागेंव रे बबा। न मुनिया संग मेंछरई न दई -ददा के दुलार। ये सरग लोक घला भुगतउल हे। ओला लागिस कुछ बुता करतेंव, नांव कमातेंव, पढ़-गुन के हुसियार बनतेंव। वोहा देवदूत ला कथे- मोला लागथे, जिनगीच हर बने रिहिसे। एक झन पोठहा गौंटिया के एकलौता बेटा राहय मुकुल। दूरिहा के नत्ता-गोत्ता वाली जौंजर छोकरी घला संग मं राहय मुनिया। ओकर अपन बिरान कोनो नी राहय। तेकरे सेती गौंटिया घर पिलपोसवा रिहिस। मुकुल अऊ मुनिया संगे खेलंय, पढ़ंय लड़ंय अऊ मेछरावंय।…

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कहिनी : सिद्धू चोर

सब झन एती ओती माल-टाल टमरत राहंय। सिध्दू गोमहा कस ठाढ़े रिहिस। एती ओती झांकिस त देखथे चुल्हा म तसमई चूरत राहय। उही मेर कोठी म पीठ टेकाय डोकरी अउंघात राहय। सिध्दू गीस, अउ माली म तसमई हेर के खाय धर लीस। थोरिक बेरा म डोकरी ल जमहासी आईस। मुहुं फार के आऽऽऽ करके हथौरी ला मुंहु मेर लेगिस। सिध्दू ओरखिस डोकरी दाई इसारा करत हे मुहुं म तसमई डार। एक साहर राहय जी, साहर के ओप्पार गांव गोहड़ा राहय जी। कोरई ढेखरा अऊ खदर मसर टेकनी झिपारी के घर…

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मिट्ठू मदरसा : रविन्द्रनाथ टैगोर के कहिनी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद

एक ठिक मिट्ठू राहय। पटभोकवा, गावय मं बने राहय। फेर बेद नई पढ़य। डांहकय, कूदय, उड़ियाय, फेर कायदा-कानहून का होथे, नई जानय। राजा कथे ‘अइसने मिट्ठू का काम के’ कोनो फायदा तो नी हे, घाटा जरूर हे। जंगल के जमें फर मन ला थोथम डारथे। ताहन राजा-मंडी म फर फरहरी के तंगी हो जाथे। मंतरी ला बलाके किहिस- ये मिट्ठू ला गियान बिदिया सिखोवव- ‘राजा के भांचा ला सिखोय-पढ़ोय के ठेका देय गीस। गुनी धियानी मन के बइसका होइस। बिचार करिन मिट्ठू म अबुजहापना काके सेती हावे। बनेच गंसियाहा भंजाय…

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सरग सुख

मुकुल के जीव फनफनागे। अल्थी-कल्थी लेवत सोचिस, अलकरहा फांदा म फंदागेंव रे बबा। न मुनिया संग मेंछरई न दई -ददा के दुलार। ये सरग लोक घला भुगतउल हे। ओला लागिस कुछ बुता करतेंव, नांव कमातेंव, पढ़-गुन के हुसियार बनतेंव। वोहा देवदूत ला कथे- मोला लागथे, जिनगीच हर बने रिहिसे। एक झन पोठहा गौंटिया के एकलौता बेटा राहय मुकुल। दूरिहा के नत्ता-गोत्ता वाली जौंजर छोकरी घला संग मं राहय मुनिया। ओकर अपन बिरान कोनो नी राहय। तेकरे सेती गौंटिया घर पिलपोसवा रिहिस। मुकुल अऊ मुनिया संगे खेलंय, पढ़ंय लड़ंय अऊ मेछरावंय।…

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टेंकहा बेंगवा

लोक कथा दाई बपरी करम छड़ही कस औंट के रहिगे। सोचिस बेटा तो मोर केहे के उल्टा करथे, मोला डोंगरी ऊपर अपन माटी गती कराना हे, त नदिया मं पाटे बर केहे लागही। अइसे विचार के चेतईस देख बेटा मरहू ताहन नदिया मं पाटबे न। नान्हे बेंगचुल (मेंचला) मूंगा कस चििचिकी हरियर राहय। पिला बकेना, बछरू बेंदरा, अऊ सबे जीव परानी के लइकई रुवाप मन मोहना होथे। तसने बहू राहय। घात उदबिरीस अऊ टेंकहा। महतारी के बरजना ओकर बर अऊ टेचराही देखाय के ओखी राहय। दाई कहाय- देख बेटा, अभी…

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मंदू

जज सहेब हर बंधेज करे हे, हमला छै महीना बर कट्टो जुवाचित्ती, दारू-फारू, चोरी-चपाटी नई करना हे कहिके। छै महीना कटिस ताहन उम्मर भर लूटमार, चोरी अउ छोरी सप्लई बर तो कानूनी पट्टा मिल जाही। जेलर सहेब के आघू म रजऊ ठेठवार अउ सुधु आके ठाड़ होगे। त लेजर हा तरी ले ऊपर निटोर के देखथे- ‘दू महीना आघू छोड़त हंव। वो चौरे उकील अउ परु ठेकादार तुंहर जबानत लीन हावे। चेत राहय दू महीना के भीतर तू मन ला ये साहर छोड़ देना हे।’ सिगरेट ला दू दम मारके…

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सलंग गे देवारी

”लइका के पीरा कतेक अऊ कइसे होथे बनवाली ले जादा बहुत कमेच्च जानथे। दूसर बिहाव के चरमुड़िया राग बनवालीच करा तीन साल ले अटके रिहिस लइका आय के होही ते आबे करही। पांच बरस पाछू अपन दाई ल 26 घंटा पीरा खवाके पहलात गुड्डुराजा आईस। रात भर पाछू खांसी म टेटका होगे, कतकोन बेर खांसत सांस छुटे कस हो जाय।” बीते देवारी मं हितेश अपन हात ला फटाका मं जरो डारे रिहिस अऊ दीपेश के गाल, सितेश के माथा मं दाग पर गेय रिहिस। फेर ओमन ला तो अपन तमंचा-टिकली…

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