Kisan Diwan

कहिनी : फंदी बेंदरा

सतजुगहा किस्सा ये, ओ पइत मनखे जनावर अउ चिरई-चिरगुन, सांप डेंड़ू, सबे मन एक दूसर के भाखा ओखरे बर जानंय।अपन… Read More

13 years ago

लोक कहिनी : ठोली बोली

छकड़ा भर खार पीये के जिनिस देख के सबे गांव वाला मन पनछाय धर लिन कब चूरय त कब सपेटन।ए… Read More

13 years ago

बाल कहिनी : अइसे धरिन चोर गोहड़ी

बाल कहिनीसबो चोरी ओतके बेर होथे, जतका बेर मनखे घर ले बाहिर रथे। ओहर घातेच बिचारिस त सुध आईस, जमे… Read More

13 years ago

सरग सुख : कहिनी

मुकुल के जीव फनफनागे। अल्थी-कल्थी लेवत सोचिस, अलकरहा फांदा म फंदागेंव रे बबा। न मुनिया संग मेंछरई न दई -ददा… Read More

13 years ago

कहिनी : सिद्धू चोर

सब झन एती ओती माल-टाल टमरत राहंय। सिध्दू गोमहा कस ठाढ़े रिहिस। एती ओती झांकिस त देखथे चुल्हा म तसमई… Read More

13 years ago

मिट्ठू मदरसा : रविन्द्रनाथ टैगोर के कहिनी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद

एक ठिक मिट्ठू राहय। पटभोकवा, गावय मं बने राहय। फेर बेद नई पढ़य। डांहकय, कूदय, उड़ियाय, फेर कायदा-कानहून का होथे,… Read More

14 years ago

सरग सुख

मुकुल के जीव फनफनागे। अल्थी-कल्थी लेवत सोचिस, अलकरहा फांदा म फंदागेंव रे बबा। न मुनिया संग मेंछरई न दई -ददा… Read More

14 years ago

टेंकहा बेंगवा

लोक कथा दाई बपरी करम छड़ही कस औंट के रहिगे। सोचिस बेटा तो मोर केहे के उल्टा करथे, मोला डोंगरी… Read More

14 years ago

मंदू

जज सहेब हर बंधेज करे हे, हमला छै महीना बर कट्टो जुवाचित्ती, दारू-फारू, चोरी-चपाटी नई करना हे कहिके। छै महीना… Read More

14 years ago

सलंग गे देवारी

''लइका के पीरा कतेक अऊ कइसे होथे बनवाली ले जादा बहुत कमेच्च जानथे। दूसर बिहाव के चरमुड़िया राग बनवालीच करा… Read More

14 years ago