सेवा दाई ददा के रोज करत तुम जाव मानो उनकर बात ला अऊर सपूत कहाव अऊर सपूत कहाव, बनो तुम सरबन साँही पाहू आसिरवाद तुम्हर भला हो जाही करथंय जे मन सेवा ते मन पाथंय मेवा यही सोच के करौ ददा-दाई के सेवा। धरती ला हथियाव झन, धरती सबके आय ये महतारी हर कभू ककरो संग न जाय ककरो संग न जाय, सबो ला धरती देवौ करौ दान धरती के पुण्य कमा तुम लेवौ देवौ येला भूमिहीन भाई-बहिनी ला सिरजिस हे भगवान सबो खातिर धरती ला। संगत सज्जन के करौ,…
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बसंत बहार : कोदूराम “दलित”
हेमंत गइस जाड़ा भागिस ,आइस सुख के दाता बसंत जइसे सब-ला सुख देये बर आ जाथे कोन्हो साधु-संत. बड़ गुनकारी अब पवन चले,चिटको न जियानय जाड़ घाम ये ऋतु-माँ सुख पाथयं अघात, मनखे अउ पशु-पंछी तमाम. जम्मो नदिया-नरवा मन के,पानी होगे निच्चट फरियर अउ होगे सब रुख-राई के , डारा -पाना हरियर-हरियर. चंदा मामा बाँटयं चाँदी अउ सुरुज नरायन देय सोन इनकर साहीं पर-उपकारी,तुम ही बताव अउ हवय कोन ? बन,बाग,बगइचा लहलहायं ,झूमय अमराई-फुलवारी भांटा ,भाजी ,मुरई ,मिरचा-मा , भरे हवय मरार-बारी. बड़ सुग्घर फूले लगिन फूल,महकत हें-मन-ला मोहत हें…
Read Moreसार – छंद : चलो जेल संगवारी
अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल संगवारी, कतको झिन मन चल देइन, आइस अब हमरो बारी. जिहाँ लिहिस अउंतार कृष्ण हर, भगत मनन ला तारिस दुष्ट मनन-ला मारिस अऊ भुइयाँ के भार उतारिस उही किसम जुरमिल के हम गोरा मन-ला खेदारीं अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल संगवारी. कृष्ण-भवन-मां हमू मनन, गाँधीजी सांही रहिबो कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दु:ख सहिबो चाहे निष्ठुर मारय-पीटय, चाहे देवय गारी. अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल संगवारी. बड़ सिधवा बेपारी बन के, हमर देश मां आइस हमर – तुम्हर…
Read Moreपितर पाख म साहित्यिक पुरखा के सुरता – कोदूराम दलित
मुड़ी हलावय टेटका, अपन टेटकी संग जइसन देखय समय ला, तइसन बदलय रंग तइसन बदलय रंग, बचाय अपन वो चोला लिलय गटागट जतका, किरवा पाय सबो ला भरय पेट तब पान पतेरा मा छिप जावय ककरो जावय जीव, टेटका मुड़ी हलावय ।। ************************** भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आँय कोन्हों खूँदे जाँय नित, कोन्हों पूजे जाँय कोन्हों पूजे जाँय, देउँता बन मंदर के खूँदे जाथें वोमन फरश बनयँ जे घर के चुनो ठउर सुग्घर मंदर के पथरा साँही तब तुम घलो सबर दिन पूजे जाहू भाई ।। – कोदूराम…
Read Moreहोले तिहार
होले तिहार बड़ निक लागेसबके मन -मा उमंग जागे.समधिन मारे पिचकारी,समधी ला बड़ सुख-सुख लागे. आमा मऊँरिन,परसा मन, पहिरिन केसरिया हारजाड़-घाम दुन्नो चल देइन अपन-अपन ससुरार.का बस्ती, का वन-उपवन, कण -कण मा खुशिहाली छागे. नंदू नंगत नगाड़ा पीटय, फगुवा गावै फागधन्नू ढोल, मंजीरा मन्नू, झंगलू झोंके राग.सररर सराईस सरवन हर, सब्बो डौकी शरमागे. मंगलू घर के नवा मंडलिन, घिव- मा बरा पकायजी छुट्टा मंगलू मंडल हर, चोरा- चोरा के खाय.जब मंडलिन गुरेरे आँखी, तब बारी कोती भागे. अच्छा मनखे दूध पियें, घिनहा मन मदिरा भंगछेना लकड़ी झटक झटक के, करें…
Read Moreछत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम “दलित “के दोहा
छत्तीसगढ़ के जन-कवि स्व.कोदूराम ‘दलित’ जी ह आजादी के संघर्स के समय रास्ट्रीयता के भावना जागृत करे खातिर दलित जी ह छत्तीसगढ़ी दोहा ल राउत नाचा के माध्यम ले गाँव-गाँव तक पहुँचाये रहिस. आज दलित जी के 101 वां जन्म दिन आय, आज उनला सुरता करत उखंर लिखे राउत नाच के छत्तीसगढ़ी दोहा हमर संगी मन बर प्रस्तुत हावय । येला हमर बर भेजे हावय दलित जी के सुपुत्र अरूण कुमार निगम जी ह । निगम जी ह जन-कवि के रचना मन ला इंटरनेट के पाठक मन बर सुलभ कराए…
Read Moreजनकवि स्व.कोदूराम’दलित’ जनम के सौ बरिस म बिसेस : ”धान-लुवाई”
चल संगवारी ! चल संगवारिन ,धान लुए ला जाई ,मातिस धान-लुवाई अड़बड़ ,मातिस धान-लुवाई. पाकिस धान- अजान,भेजरी,गुरमटिया,बैकोनी,कारी-बरई ,बुढ़िया-बांको,लुचाई,श्याम-सलोनी. धान के डोली पींयर-पींयर,दीखय जइसे सोना,वो जग-पालनहार बिछाइस ,ये सुनहरा बिछौना . गंगाराम लोहार सबो हंसिया मन-ला फरगावय ,टेंय – टुवाँ के नंगत दूज के चंदा जस चमकावय दुलहिन धान लजाय मनेमन, गूनय मुड़ी नवा के,आही हंसिया-राजा मोला लेगही आज बिहा के. मंडल मन बनिहार तियारयं, बड़े बिहिनिया ले जाके,चलो दादा हो !,चलो बाबा ! कहि-लेजयं मना-मना के. कोन्हों धान डोहारे खातिर,लेजयं गाड़ी-गाड़ा,फ़ोकट नहीं मिलयं तो देवयं , छै-छै रुपिया भाड़ा. लकर-धकर…
Read Moreछत्तीसगढी कुण्डली (कबिता) : कोदूराम दलित
छत्तीसगढ पैदा करय, अडबड चांउर दारहवय लोग मन इंहा के, सिधवा अउ उदारसिशवा अउ उदार, हवैं दिन रात कमाथेंदे दूसर ला भात, अपन मन बासी खाथेंठगथैं ये बपुरा मन ला, बंचकमन अडबडपिछडे हावय हमर, इही कारन छत्तीसगढ । ढोंगी मन माला जपैं, लम्मा तिलक लगायहरिजन ला छूवै नहीं, चिंगरी मछरी खायचिंगरी मछरी खाय, दलित मन ला दुतकारैकुकुर बिलई ला चूमय, पावै पुचकारैंछोंड छांड के गांधी के, सुघर रस्ता लाभेदभाव पनपाय, जपै ढोंगी मन माला । कोदूराम दलित
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