साहित्यिक पुरखा के सुरता : कुञ्ज बिहारी चौबे

चल ओ उठ ओ चरिहा धरके, हम गोबर बीने ला जातेन ओ। बिन लेतेन गोबर पातेन तौ, अउ साँझ के घर चलि आतेन ओ।। तैं हर बोलत काबर नहिं ओ बहिनी, तैं हर काबर आज रिसाये हवस। चुटकी -मुँदरी सब फेंक दिहे, अंगना म परे खिसियाये हवस ।। xxx xxx xxx चल मोरे भैया बियासी के नागर चल मोरे भैया बियासी के नागर, अरे! कैसे मजा के बियासी के नागर! बिजली लफालफ चमकत है, इंदर देवता ह तमकत हे। जुड़ जुड़ बोहत हवे पुरवाही, दीखत हे लच्छन गजब पानी आही।…

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