दाँव गवाँ गे गाँव-गाँव म गाँव गवाँ गेखोजत-खोजत पाँव गवाँ गे। अइसन लहँकिस घाम भितरहा छाँव-छाँव म छाँव गवाँ गे। अइसन चाल चलिस सकुनी हर धरमराज के दाँव गवाँ गे। झोप-झोप म झोप बाढ़ गे कुरिया-कुरिया ठाँव गवाँ गे। जब ले मूड़ चढ़े अगास हे माँ भुइयाँ के नाँव गवाँ गे। जहर नइये कहूँ सिरतोन के कदर नइये लबरा ला कखरो डर नइये। कुआँ बने हे जब ले जिनगी पानी तो हवे, लहर नइये। एमा का कसूर दरपन के देखइया जब सुघ्घर नइये। बिहान मड़ियावत काहाँ चलिस बूता ला कुछू…
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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – मया धन
मितान हम-तुम लकठा जातेन दुख-सुख बाँट के जुड़ा जातेन। दिन भर किंजर-बूल के संगी एक खोंधरा मा बने आ जातेन। जुच्छा मा भरे-भरे लगतिस गुरतुर गोठ के धन पा जातेन। मनखे के आतिस काम बने अइसन मया-धन कमा जातेन। गाँव के, भुइयां के, माटी के बिजहा-धान-कस गँवा जातेन। लाला जगदलपुरी
Read Moreश्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘फुटहा दरपन’ अउ ‘मनखे मर गे’
फुटहा दरपन हरियर छइहाँ हर उदुप ले हरन हो गे तपत, जरत-भूँजात पाँव के मरन हो गे। घपटे रहि जाथे दिन-दिन भर अँधियारी अँजोर के जब ले डामरीकरन हो गे। कुकुर मन भूकत हवें खुसी के मारे मनखे मनखे के अक्कट दुसमन हो गे। जउन गिरिस जतके, ओतके उठिस ओ हर अपत, कुलच्छन के पाँव तरी धन हो गे। करिन करइया मन अइसन पथराव करिन मन के दरपन हर फुटहा दरपन हो गे। का करे साँप धरे मेचकी-अस जिनगी हर निचट भिंभोरा-कस मनखे के तन हो गे। मनखे मर गे…
Read Moreश्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – रतिहा
पहाड़-कस गरू हवय अँधियारी रतिहा टोनही बन गे हे एक कुआँरी रतिहा। बने रद्दा ह बने नइ लागय मनखे ला कोनो ला नइ दय कोनो चिन्हारी रतिहा। भिम-अँधियार के गुन गावत हे गुनवंतिन अँजोर के करथय बहुंते चारी रतिहा। अँगठी फोरथे दुखाही ह चच्चर ले सरापथे दिन ला, देथय गारी रतिहा। अब्बड़ रोवत हें खोर-खोर कुकुर मन निचट जनावत हे असगुन भारी रतिहा। नइ मिलय नींद के कहूँ आरो बसती मा अइसन धमकाथे नयन-दुआरी रतिहा। कहूँ सिरोतन के कदर नइये सँगवारी अइसन फरकाथे गोठ लबारी रतिहा। कतको करवाथे अलिन-गलिन बटमारी…
Read Moreश्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘पता नइये’ अउ ‘अभागिन भुइयाँ ‘
पता नइये कखरो बिजहा ईमान के पता नइये कखरो सोनहा बिहान के पता नइये। घर-घर घपटे हे अँधियारी भैया गा सुरुज हवे, किरन-बान के पता नइये। पोथी पढ़इया-सुनइया पढ़थयँ-सुनथयँ जिनगी जिये बर गियान के पता नइये। करिस मसागत अउ खेती ला उजराइस किसान के घर धन-धान के पता नइये। अभागिन भुइयाँ तैं हर झन खिसिया, मोर अभागिन भुइयाँ निचट लहुटही दिन तोर अभागिन भुइयाँ।मुँह जर जाही अँधियारी परलोकहिन के मन ले माँग ले अँजोर अभागिन भुइयाँ। पहाड़-कस रतिहा बैरी गरुआगे हे बन जा तहूँ अब कठोर अभागिन भुइयाँ। कखरो मन…
Read Moreश्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – धन-पसु
पेट सिकन्दर हो गे हे मौसम अजगर हो गे हे। निच्चट सुक्खा पर गे घर आँखी पनियर हो गे हे। हँसी-खुसी के रद्दा बर बटमारी घर हो गे हे। मया-दया के अचरा के जिनगी दूबर हो गे हे। दुसमन तो दुसमन होथे मितान के डर हो गे हे। पसु-धन के चारा चर के धन-पसु हरियर हो गे हे। बाढ़िस खेती भाँठा के आसा बंजर हो गे हे। लाला जगदलपुरी
Read Moreश्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – का कहिबे?
मन रोवत हे मुँह गावत हे का कहिबे गदहा घलो कका लागत हे का कहिबे? अब्बड़ अगियाए लागिस छइहाँ बैरी लहँकत घाम ह सितरावत हे का कहिबे? खोर-खोर म कुकुर भूकिस रे भइया घर म बघवा नरियावत हे का कहिबे? छोंरिस बैरी मया-दया के रद्दा ला सेवा ला पीवत-खावत हे का कहिबे? चर डारे हे बखरी भर ईमान ला कतका खातिस पगुरावत हे का कहिबे? सावन-भादों बारों मास गरिबहा के लकड़ी-कस मन गुँगुवावत हे का कहिबे? लाला जगदलपुरी
Read Moreलाला जगदलपुरी के कबिता
जब ले तैं सपना से आये मोला कुछु सुहावत नइये संगी तैं ह अतेक सुहाये पुन्नी चंदा ल देखेंव तोरे मुह अस गोल गढन हे अंधियारी म तारा देखेंव माला के मोती अस तन हे तोर सुगंध रातरानी हर भेजत रहिथे संग पवन के नींद भरे रहिथे आंखीं में दुख बिसराथंव जनम मरन के । लाला जगदलपुरी
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