व्यंग्य : माफिया मोहनी

बाई हमर बड़े फजर मुंदराहा ले अँगना दूवार बाहरत बनेच भुनभुनात रहय, का बाहरी ला सुनात राहय या सुपली धुन बोरिंग मा अवईया जवईया पनिहारिन मन ल ते, फेर जोरदार सुर लमाय राहय – सब गंगा म डुबक डुबक के नहात हें, एक झन ये हर हे जेला एकात लोटा तको नी मिले। अपन नइ नाहय ते नइ नाहय। लोग लइका के एको कनी हाथ तो धोवा जथिस। भगवान घलो बनईस एला ते कते माटी के? एकर दारी तो कोनो कारज बने ढंग ले होबेच नी करे । कतेक नी…

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बाहिर तम्बू छोड़ के, आबे कब तैं राम

गली गली मा देख लव,एके चरचा आम । पाछु सहीं भुलियारहीं ,धुन ये करहीं काम । अाथे अलहन के घड़ी,सुमिरन करथें तोर । ऊंडत घुंडत माँगथे ,हाथ पाँव ला जोर । मतलब खातिर तोर ये ,दुनिया लेथे नाँव । जब बन जाथे काम हा, पुछे नही जी गाँव । कहना दशरथ मान के ,महल छोड़ के जाय । जंगल मा चउदा बछर ,जिनगी अपन पहाय । तुम्हरो भगत करोड़ हे, बाँधे मन मा आस । राम लला के भाग ले, जल्द कटय बनवास । फुटही धीरज बाँध ये, मानस कहूँ…

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गज़ल : किस्सा सुनाँव कइसे ?

ये पिरीत के किस्सा सुनाँव कइसे ? घाव बदन भर के ला लुकाँव कइसे ? देंवता कस जानेंव ओकर मया ला मँय हर , अब श्रद्धा म माथ ला झुकाँव कइसे ? पाँव धँसगे भुइँया म देखते देखत , बिन सहारा ऊपर ओला उचाँव कइसे ? पानी म धोवाय छुँही रंग सहिन दिखथे, हो तो गेंव उघरा अब लजाँव कइसे ? ये जमाना ताना अबड़े मारत हे ‘ललित’ बताय कोनो जिनगी ला बचाँव कइसे ? ललित नागेश बहेराभाँठा (छुरा) ४९३९९६

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गाँव गाँव आज शहर लागे

गाँव म गरीब जनता खातिर चलाये जात योजना मन उपर आधारित गाँव गाँव आज शहर लागे, चकचक ले चारो डहर लागे ! फूलत हे फूल मोंगरा विकास के, ओलकी कोलकी महर महर लागे ! जगावत हे भाग अमृत बनके , जे गरीबी हमला जहर लागे ! संसो दुरियागे देख नवा घरौंदा, खदर जेमा ढांके हर बछर लागे ! काया पलटत जमाना हे ललित, सांगर मोंगर होगे जे दुबर लागे! रद्दा गढ़त अब बिन संगवारी के, रेंगत अकेल्ला जिंहा डर डर लागे ! घात सुग्घर निखरत रूप भूंइया ला, देखव बने…

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गरीब बनो अउ बनाओ

नवा बछर के बधाई म मोर एकलौता संगवारी जब ले केहे हे – ‘मंगलमय’। मंगलवार घलो इतवारमय लागत हे। इतवार माने सब छोड़छाड़ के, हाथ गोड़ लमाके अटियाय के दिन। फुरसत के छिन। अच्छा दिन।जब ले सुने हंव गरीब नामक जीव के उद्धार बिल्कुल होवईयाच हे, संडेवा काड़ी सहिन शरीर के छाती मुस्कुल म बीस पचीस इंच होही, फूलके छप्पन इंच होगे हवय। अब देखव न हर कोई गरीबेच के सेवा ल अपन धरम मान के तन मन लगाके धन बनात हें। जब ले ए दुनिया के सिरजन होय हे…

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देख कइसे फागुन बउरात आत हे

लुका झन काहत बड़ ठंडी रात हे, देख कइसे फागुन बउरात आत हे! झराके रुखवा चिरहा जुन्ना डारापाना, नवा बछर म नवा ओनहा पहिरात हे! रति संग मिलन के तैय्यारी हे मदन के कोयली ह कइसे रास बरस मिलात हे! मउहा कुचियाके बांधे लगिन दिन बादर, फुलके परसा सरसो महुर मेंहदी रचात हे! फगुवा के राग म निकले तियार बराती, बनके लगनिया आमा मउर चढ़ात हे! माते पुरवाई झुमरत बन के बंडोरा, सुनावत सब ल सरसर बधाई गात हे! ललित नागेश बहेराभांठा(छुरा) [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]

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गज़ल

बदलगे तोर ठाठबाट अउ बोली,गोठियात हे सब झन ह मंदरस कहां ले बरसय ,करेला कस होगे हे जब मन ह पोत के कतको कीरिम पवडर,सजा ले अपन बाना ल नइ दिखय सुघ्घर मुरत तोर, जब तड़के रइही दरपन ह! चारों खुंट लाहो लेवत हे, बड़े बड़े बिखहर बिछुरी सांप संगत म अब सुभाव देख,बदले कस दिखत हे चंदन ह भोकवाय गुनत रही जाबे, देख नवा जमाना के गियान सियानी धराके नान्हे हांथ कलेचुप बुलकत हे ननपन ह बिरथा हो जाही पोसे तोर,मन म अकल के घोड़ा घमंड सुधबुध सबो गंवा…

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व्यंग्य : बटन

जब ले छुए वाला (टच स्क्रीन) मोबईल के चलन होय हे बटन वाला के कोनो किरवार करईया नइ दिखय। साहेब, सेठ ले लेके मास्टर चपरासी ल का कबे छेरी चरईया मन घलो बिना बटन के मोबईल म अंगरी ल एति ले ओति नचात रहिथें। अउ काकरो हाथ म बटन वाला मोबईल देख परही त वो ल अइसे हिकारत भरे नजर ले देखथे जानोमानो बड़ भारी पाप कर डारे होय। फेर ये बटन नाम के जिनिस हमर जिनगी म कइसन कइसन रुप लेके समाय हे, सब जानथे। हमर दिन के शुरवात…

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गज़ल

कतेक करबे इंहा तै बईमानी जिनगी एक दिन ए जरूर होही हलाकानी जिनगी! जब कभु टुट जाही मया ईमान के बंधना संतरा कस हो जाही चानी चानी जिनगी! चारी लबारी के बरफ ले सजाये महल सत के आंच म होही पानी पानी जिनगी! घात मेछराय अपन ठाठ ल हीरा जान के धुररा सनाही तोर गरब गुमानी जिनगी ! सुवारथ के पूरा म बहा जाही पहिचान बचा, बिरथा झन होय तोर जुवानी जिनगी! जब कभु उघारय कोनो किताब इतिहास के हरेक पन्ना म मिलय तोरे कहानी जिनगी! ललित नागेश बहेराभांठा (छुरा)…

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ललित नागेश के गज़ल

दुख संग म मोर गजब यारी हे दरद म हांसे के बीमारी हे! कहां सकबो नगदी मोलियाय तरी उपर सांस घलो उधारी हे! आंसू म धोआगे मन के मइल काकरो बर बैर न लबारी हे ! रोना ल गाना बना दंव मय हर पा जांव हुनर के बस तय्यारी हे ! जे दिन कलेचुप देखबे मोर ओंट जान उही दिन खुशी मोर दुवारी हे! ललित नागेश बहेराभाठा (छुरा) 493996 [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]

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