कविता: कुल्हड़ म चाय

जबले फैसन के जमाना के धुंध लगिस हे कसम से चाय के सुवारद ह बिगडिस हे अब डिजिटल होगे रे जमाना चिट्ठी के पढोईया नंदागे गांव ह घलो बिगड़ गे जेती देखबे ओती डिस्पोजल ह छागे कुनहुन गोरस के पियैया “साहिल” घलो दारू म भुलागे आम अमचूर बोरे बासी ह नंदागे तीज तिहार म अब फैसन ह आगे पड़ोसी ह घलो डीजे म मोहागे का कहिबे मन के बात ल अब अपन संगवारी ह घलो मीठ लबरा होगे जेती देखबे ओती मोबाईल ह छागे घर म खुसर फुसुर अउ खोल…

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जिनगी जरत हे तोर मया के खातिर

जिनगी अबिरथा होगे रे संगवारी सुना घर – अंगना भात के अंधना सुखागे जबले तै छोड़े मोर घर -अंगना छेरी – पठरू ,घर कुरिया खेती – खार खोल – दुवार कछु नई सुहावे तोर बोली ,भाखा गुनासी आथे का मोर ले होगे गलती कैसे मुरछ देहे मया ल सात भाँवर मड़वा किंजरेंन मया के गठरी म बंध गेन नान – नान, नोनी – बाबू मया चोहना ल कैसे भुलागे जिनगी जरत हे तोर मया के खातिर ….. काबर तै मोला भुलागे जिनगी ल अबिरथा बनादे लहुट आ अब मोर जिनगी…

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बंदत्त हंव तोर चरन ल

गांव के मोर कुशलाई दाई बिनती करत हंव मैं दाई सुन ले लेते मोरो गुहार ओ दुखिया मन के दुख ल हर लेथे बिपति म तै खड़ा रहिथे अंगना म तै बैठे रहिथे जिनगी सफल हो जाथिस सुघ्घर रहथिस मोरो परिवार ओ तोरे चरन के गुन गांवों ओ ये मोर मैय्या सुन लेथे मोरो अरजी सुना हे मोरो अंगना भर देथे किलकारी ओ जनम के हं मैं ह दुखिया नइये मोरो कोनो सुनैया मया के दे आसीस तै मोर मैय्या नव रात म तोर गुन ल गांहंव ओ दे दे…

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बसंत रितु आगे

बसंत रितु आगे मन म पियार जगागे हलु – हलु फागुन महीना ह आगे सरसों , अरसी के फूल महमहावत हे देख तो संगवारी कैसे बर – पीपर ह फुनगियागे हलु – हलु फागुन महीना ह आगे पिंयर – पिंयर सरसों खेत म लहकत हे भदरी म परसा ह कैसे चमकत हे अमली ह गेदरागे बोइर ह पकपकागे आमा मउर ह महमहावत हे नीम ह फुनगियावत हे रितु राज बसंत आगे हलु – हलु फागुन महीना ह आगे कोयली ह कुहकत हे मीठ बोली बोलत हे सखी ! रे देख…

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दादा मुन्ना दास समाज ल दिखाईस नावा रसदा

रायगढ़ जिला के सारंगढ़ विकास खंड के पश्चिम दिसा म सारंगढ़ ल 16 किलोमीटर धुरिया म गांव कोसीर बसे आय। जिन्हा मां कुशलाई दाई के पुरखा के मंदिर हावे अंचल म ग्राम्य देवी के रूप म पूजे जाथे। इंहा के जतको गुन गान करी कम आय। समाज म अलग अलग धरम जाति पांति के लोगन मन के निवास होथे अउ अपन अपन धरम करम ले पहिचाने जाथे फेर कोनो महान हो जाथे त कोनो ग्यानी – धयानि अउ दानी इसनेहे एक नाम कोसीर गांव के हावय जेखर नाम ल आज…

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खिलखिलाती राग वासंती

खिलखिलाक़े लहके खिलखिलाक़े चहके खिलखिलाक़े महके खिलखिलाक़े बहके खिलखिलाती राग वासंती आगे खिलखिलाती सरसों महकती टेसू मदमस्त भँवरे सुरीली कोयली फागुन के महीना अंगना म पहुना बर पीपर म मैना बैठे हे गोरी के गाल हाथ म रंग गुलाल पनघट म पनिहारिन सज – संवर के बेलबेलावत हे पानी भरे के बहाना म सखी – संगवारी संग पिया के सुध म सोरियावत हे मने मन अपन जिनगी के पीरा ल बिसरावत हे खिलखिलाक़े राग वासंती आगे पिंजरा ले मैना आँखी ले काजर हाथ ले कंगन मुँह ले मीठ बोली गावत…

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बसंत आगे रे संगवारी

घाम म ह जनावत हे पुरवाही पवन सुरूर-सुरूर बहत हे अमराई ह सुघ्घर मह महावत हे बिहिनिहा के बेरा म चिराई-चुरगुन मन मुचमुचावत हे बर-पीपर घलो खिलखिलावत हे महुआ, अउ टेसू म गुमान आगे बसंत आगे रे संगवारी कोयली ह कुहकत हे संरसों ह घलो महकत हे सुरूर-सुरूर पवन पुरवाही भरत हे मोर अंगना म संगवारी बसंत आगे जेती देखव तेति हरिहर लागे खेत-खार के रुख-राई मन भरमाथे फागुन बन के आगे पहुना अंगना म हे उछल मंगल मड़वा सज के संगवारी के बसंत आगे अंगना म रंग-गुलाल खेबोन बसंत…

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सरसों ह फुल के महकत हे

देख तो संगी खलिहान ल सरसों ह फुल गे घम घम ल पियर – पियर दिखत हे मन ह देख के हरसावत हे नावा बिहान के सन्देस लेके आये हे नावा बहुरिया कस घुपघुप ल हे हवा म लहरत हे सुघ्घर मजा के दिखत हे पड़ोसिन ह लुका लुका के भाजी ल तोरत हे फुल के संग म डोलत हे अगास ह घलो रंग म रंग गेहे हे देखैया मन के मन मोहत हे महर महर महकत हे रसे रस डोलत हे देख के मन ह हरसत हे पियर –…

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मदरस कस मीठ मोर गांव के बोली

संगी – जहुरिया रहिथे मोर गांव म हरियर – हरियर खेती खार गांव म उज्जर – उज्जर इहां के मनखे ,मन के आरुग रहिथें गांव म खोल खार हे सुघ्घर संगी बर ,पीपर के छांव हे संगी तरिया – नरवा अऊ कुंआ बारी गांव के हावे ग चिन्हारी किसिम – किसिम के इहां हावे मनखे सुख – दुख के इहां हावे साथी गांव म दिखथे ग मया – दुलार दाई – ददा के चोहना बबा के डुलार तुलसी के चौरा म मंदिर के दुवार म दुख पीरा गोहराथन छोटे बड़े…

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अपन भासा अपन परदेस के पहचान

संपादक ये आलेख के लेखक के ‘प्रदेश’ शब्‍द के जघा म ‘परदेस’ शब्‍द के प्रयोग म सहमत नई हे। अइसे हिन्‍दी के अपभ्रंश शब्‍द मन जउन पहिली ले प्रचलित नई ये ओ मन ल बिना कारन के बिगाड़ के लिखई अर्थ के अनर्थ करना हे। ‘परदेस’ से आन देश के भाव आथे.. आज हमर छत्तीसगढ़ ल राज बने अठारह बछर होगे फेर मातृभासा म पढ़ाई -लिखाई नई होवत हे। छत्तीसगढ़ के हमर छत्तीसगढ़ी भासा अबड़ मीठ भासा आय जब दू झन अपन भासा म गोठ – बात करत रहिथे त…

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