कविता : मन के मोर अंगना म

सखी रे ! बसंत आगे मन के मोर अंगना म कोयल भुलागे अपन बोली बर-पीपर के पान बुडगागे अबीर धरे धरे हाथ ल गंवागे पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे कब आही मोर मयारू सपना मोर अबिरथा होगे गुरतुर गोठ अब सुहावे नही पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे दरपन मोला भावे नही कंकन के अवाज काजर अउ fबंदिया सुहावे नही सखी रे ! बसंत आगे जिनगी मोर अबिरथा होगे पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे लक्ष्मी नारायण लहरे साहिल युवा साहित्यकार पत्रकार कोसीर सारंगढ

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कविता : कहॉं लुकाये मोर मईया

कहॉं लुकाये मोर मईया तोला खोज डारेंव ओ कोने गांव – नगर डगर में मईया, कोने शहर में मईया जस ल तोर मन म गुनगुनाथौं हिरदे म सुमिरन करथौं कहॉं लुकाये मोर मईया तोला खोज डारेंव ओ रायगढ बुढी माई गयेंव चन्र्यपुर चन्र्रहासनी ओ सारंगढ समलाई गयेंव कोसीर कुशलाई ओ अडभार के अष्टभुजी गयेंव रतनपुर महमाई ओ तोला खोज डारेंव ओ कहॉं लुकाये मोर मईया कोने गांव – नगर डगर में मईया, कोने शहर में मईया तोर चरन के धुर्रा – माटी माथ म लगायें मन मोर तरगे जिनगी मोर…

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कुशलाई दाई के मंदिर म सजे हे जेवारा.

कुशलाई दाई के मंदिर म सजे हे जेवारा….. मंगल गीत गावत हांवे झुमत हें सेवा म जगर बगर जोत जलत हे दाई के भुवन म बैगा झुमत हे मांदर के सुर म नाहे नाहे लईका मन अउ सियान मन हावे अंगना म मंगल गीत गावत हांवे झुमत हें सेवा म डोकरी दाई घर राखत हावे घर होगे हे सूना दाई के अंगना म कैसे झुमत हे अपन रंग म घर के दाई ल भुलागिन अउ बिनती कहत हे कुशलाई दाई ल सुनले मोरो मन के बात ये बछर मोर करदे…

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कविता : नोनी बर फुल

नोनी बर फुल …. घर के अंगना म फुले हे कनेर के फुल पिअर -पियर दिखत हे डाली म झुलत हे नोनी ह देख के दाई ल पुचकारत हे खिलखिलाके हांस के बेलबेलावत हे अंचरा ल दाई के खिंच – खिंच के फुल ल बतावत हे दाई भुइंया म बैठ के दही ले लेवना निकालत हे दाई नोनी के इसारा ल समझ नई पावत हे नोनी अंगना म घूम -घूम के फुल ल बतावत हे नोनी स्कुल जाए के बेरा म बेनी ल बतावत हे दाई के सुध आगे अंगना…

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