बरस जा बादर बरस जा बादर, गिर जा पानी, देखत हावन। तरसत हावन, तोर दरस बर, कहाँ जावन। आथे बादर, लालच देके, तुरंत भगाथे। गिरही पानी, अब तो कहिके, आश जगाथे। सुक्खा हावय, खेत खार हा, कइसे बोवन। बइठे हावन, तोर अगोरा, सबझन रोवन। झमाझम अब, गिर जा पानी, हाथ जोरत हन। सबो किसान के, सुसी बुता दे, पाँव परत हन। किसानी के दिन आ गे दिन किसानी के अब, नाँगर धरे किसान। खातू कचरा डारत हावय, मिल के दूनों मितान। गाड़ा कोप्पर टूटहा परे, वोला अब सिरजावे। खूंटा पटनी…
Read MoreTag: Mahendra Dewangan Mati
काँदा कस उसनात हे
कभू घाम कभू पानी, भुँइया हा दंदियात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। दिनमान घाम के मारे , मुँहू कान ललियावत हे । पटकू बाँध के रेंगत हे , देंहे हा पसिनयावत हे। माटी के घर ला उजार के, लेंटर ला बनात हे । जेठ के महिना में आदमी, काँदा कस उसनात हे। कूलर पंखा चलत तभो ले , पसीना हा आवत हे । लाइन हा गोल होगे ताहन , भारी दंदियावत हे । दिन में चैन न रात में चैन, मच्छर घलो भुनभुनात हे।…
Read Moreआज काल के लइका : दोहा
पढ़ना लिखना छोड़ के, खेलत हे दिन रात । मोबाइल ला खोल के, करथे दिन भर बात ।। आजकाल के लोग मन , खोलय रहिथे नेट । एके झन मुसकात हे , करत हवय जी चेट ।। छेदावत हे कान ला , बाला ला लटकात । मटकत हावय खोर मा , नाक अपन कटवात ।। मानय नइ जी बात ला , सबझन ला रोवात । नाटक करथे रोज के, आँसू ला बोहात ।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा ) छत्तीसगढ़
Read Moreढोंगी बाबा
गाँव शहर मा घूमत हावय , कतको बाबा जोगी । कइसे जानबे तँहीं बता, कोन सहीं कोन ढोंगी ? बड़े बड़े गोटारन माला, घेंच मा पहिने रहिथे । मोर से बढ़के कोनों नइहे, अपन आप ला कहिथे । फँस जाथे ओकर जाल मा , गाँव के कतको रोगी । कइसे जानबे तँही बता, कोन सही कोन ढोंगी ? जगा जगा आश्रम खोल के, कतको चेला बनाथे । पढ़े लिखे चाहे अनपढ़ हो , सबला वोहा फंसाथे । आलीशान बंगला मा रहिके, सबला बुद्धू बनाथे । माया मोह ला छोड़ो कहिके,…
Read Moreआमा के चटनी
आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे, दू कंऊरा भात ह जादा खवाथे । कांचा कांचा आमा ल लोढहा म कुचरथे, लसुन धनिया डार के मिरचा ल बुरकथे। चटनी ल देख के लार ह चुचवाथे, आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे । बोरे बासी संग में चाट चाट के खाथे, बासी ल खा के हिरदय ह जुड़ाथे, खाथे जे बासी चटनी अब्बड़ मजा पाथे, आमा के चटनी ह अब्बड़ मिठाथे। बगीचा में फरे हे लट लट ले आमा, टूरा मन देखत हे धरों कामा कामा । छुप छुप के चोराय बर…
Read Moreअकती के तिहार
छत्तीसगढ़ में अकती या अक्छय तृतीया तिहार के बहुत महत्व हे । ये दिन ल बहुत ही सुभ दिन माने गेहे। ये दिन कोई भी काम करबे ओकर बहुत ही लाभ या पून्य मिलथे। अइसे वेद पुरान में बताय गेहे। कब मनाथे – अकती के तिहार ल बैसाख महीना के अंजोरी पाख के तीसरा दिन मनाय जाथे। एला अक्छय तृतीया या अक्खा तीज कहे जाथे। अक्छय के मतलब ही होथे कि जो भी सुभ काम करबे ओकर कभू छय नइ होये। एकरे सेती एला अक्छय तृतीया कहे जाथे। परसुराम अवतार…
Read Moreलेख : बंटवारा
बुधारु अऊ समारु दूनों भाई के प्रेम ह गांव भर में जग जाहिर राहे ।दूनों कोई एके संघरा खेत जाय अऊ मन भर कमा के एके संघरा घर आय । कहुंचो भी जाना राहे दूनों के दोस्ती नइ छूटत रिहिसे ।ओकर मन के परेम ल देख के गाँव वाला मन भी खुस राहे अऊ बोले के एकर मन के जोड़ी तो जींयत ले नइ छूटे । बिचारा बुधारु अऊ समारु के बाप तो नानपन में ही मर गे रिहिसे ।बाप के सुख ल तो जानबे नइ करत रिहिसे ।ओकर दाई…
Read Moreवाह रे कलिन्दर
वाह रे कलिन्दर, लाल लाल दिखथे अंदर। बखरी मा फरे रहिथे, खाथे अब्बड़ बंदर। गरमी के दिन में, सबला बने सुहाथे। नानचुक खाबे ताहन, खानेच खान भाथे। बड़े बड़े कलिन्दर हा, बेचाये बर आथे। छोटे बड़े सबो मनखे, बिसा के ले जाथे। लोग लइका सबो कोई, अब्बड़ मजा पाथे। रसा रहिथे भारी जी, मुँहू कान भर चुचवाथे। खाय के फायदा ला, डाक्टर तक बताथे। अब्बड़ बिटामिन मिलथे, बिमारी हा भगाथे। जादा कहूँ खाबे त, पेट हा तन जाथे। एक बार के जवइया ह, दू बार एक्की जाथे। महेन्द्र देवांगन माटी…
Read Moreतिंवरा भाजी
तिंवरा भाजी दार संग , अब्बड़ मिठाथे । दू कंऊरा भात ह संगी, जादा खवाथे । उल्हा उल्हा भाजी ह, बड़ गुरतुर लागथे । मिरचा लसून संग , जब फोरन में डारथे । नान नान लइका मन , चोराय बर जाथे । झोला झोला धरथे अऊ, मुँहू भर खाथे । ओली ओली टोर के, भौजी ह धरके लाथे । पेट भर भात ल भैया, चांट चांट के खाथे । हरियर हरियर देख के, गाय बेंदरा जाथे । कतको रखवारी करबे, राहीछ मताथे । थोर थोर खाय ले , भाजी अब्बड़…
Read Moreदोहा : गरमी अऊ पानी
गरमी आवत देख के, तोता बोले बात। पाना नइहे पेड़ मा, कइसे कटही रात।। झरगे हावय फूल फर, कइसे भरबो पेट। भूख मरत लइका सबो, जुच्छा हावय प्लेट।। नदियाँ नरवा सूख गे, तरिया घलव अटाय। सुक्खा होगे बोर हा, कइसे प्यास बुझाय।। पानी खातिर होत हे, लड़ई झगरा रोज। मार काट होवत हवय, थाना जावत सोज।। टपकत हावय माथ मा , पसीना चूचवाय। गरम गरम हावा चलत, अब्बड़ घाम जनाय।। कइसे बांचे जीव हा , चिन्ता सबो सताय। पानी नइहे बूंद भर, मोला रोना आय।। महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया (कवर्धा…
Read More