होली हे भई होली हे, बुरा न मानों होली हे। होली के नाम सुनते साठ मन में एक उमंग अऊ खुसी छा जाथे। काबर होली के तिहार ह घर में बइठ के मनाय के नोहे। ए तिहार ह पारा मोहल्ला अऊ गांव भरके मिलके मनाय के तिहार हरे। कब मनाथे – होली के तिहार ल फागुन महीना के पुन्नी के दिन मनाय जाथे। एकर पहिली बसंत पंचमी के दिन से होली के लकड़ी सकेले के सुरु कर देथे। लइका मन ह सुक्खा लकड़ी ल धीरे धीरे करके सकेलत रहिथे। लकड़ी…
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बसंती हवा
लाल लाल फूले हे, परसा के फूल। बांधे हे पेड़ मा, झूलना ला झूल। पिंयर पिंयर दिखत हे, सरसों के खेत। गाय गरु चरत हे, करले थोकिन चेत। टप टप टपकत हावय, मऊहा के फर। बीन बीन के टूरी तैं, झंऊहा मा धर। आये हे बसंत रितु, चलत हे बयार। मेला घूमे ला जाबोन, रहिबे तइयार। आवत हे होली अऊ, गाबोन जी फाग। मय गाहूं गाना अऊ, तैं झोंकबे राग। मटक मटक रेंगत हे, मोटियारी टूरी। खन खन बजावत हे, हाथ के चूरी। फुरुर फुरुर चलत हे, बसंती हवा। मटकावत…
Read Moreलघुकथा : कन्या भोज
आज रमेश घर बरा, सोंहारी, खीर, पुरी आनी बानी के जिनीस बनत राहय। ओकर सुगंध ह महर महर घर भर अऊ बाहिर तक ममहावत राहय। रमेश के नान – नान लइका मन घूम घूम के खावत रिहिसे। कुरिया में बइठे रमेश के दाई ह देखत राहय, के बहू ह मोरो बर कब रोटी पीठा लाही। भूख के मारे ओकर जी ह कलबलात राहय। फेर बहू के आदत ल देखके बोल नइ सकत राहय। बिचारी ह कलेचुप खटिया में बइठ के टुकुर – टुकुर देखत राहय। थोकिन बाद में पारा परोस…
Read Moreमहेन्द्र देवांगन माटी के कविता : बसंत बहार
सुघ्घर ममहावत हे आमा के मऊर, जेमे बोले कोयलिया कुहुर कुहुर। गावत हे कोयली अऊ नाचत हे मोर, सुघ्घर बगीचा के फूल देख के ओरे ओर। झूम झूम के गावत हे टूरी मन गाना, गाना के राग में टूरा ल देवत ताना। बच्छर भर होगे देखे नइहों तोला, कहां आथस जाथस बतावस नहीं मोला। कुहू कुहू बोले कोयलिया ह राग में, बइठे हों पिया आही कहिके आस में। बाजत हे नंगाड़ा अऊ गावत हे फाग, आज काकरो मन ह नइहे उदास। बसंती के रंग में रंगे हे सबोझन, गावत हे…
Read Moreमांघी पुन्नी के मेला
जगा जगा भराय हाबे, मांघी पुन्नी के मेला । कोनो जावत जोड़ी जांवर, कोनो जावत अकेला । कोनो जावत मोटर गाड़ी, कोनो फटफटी में जावत हे। कोनों रेंगत भसरंग भसरंग, कोनो गाना गावत हे। हाबे संगी अब्बड़ भीड़, होवत रेलम पेला। जगा जगा भराय हाबे, मांघी पुन्नी के मेला। लगे हाबे मीना बजार, होवत खेल तमासा । जगा जगा बेचावत हाबे, मुर्रा लाई बतासा । डोकरी दाई खावत हाबे, बइठ के केरा अकेल्ला। जगा जगा भराय हाबे, मांघी पुन्नी के मेला । महेन्द्र देवांगन माटी पंडरिया [responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये…
Read Moreतिल लाड़ू खाबोन – मकर संक्रांति मनाबोन
मकर संकराति हिन्दू धरम के एक परमुख तिहार हरे। ए परब ल पूरा भारत भर में एक साथ मनाये जाथे। पूस मास में सुरुज देव ह धनु राशि ल छोड़ के मकर राशि में परवेस करथे इही ल मकर संकराति के नाम से जाने जाथे। मकर संकराति के दिन से ही सूर्य के उत्तरायन गति ह शुरू हो जाथे। ए दिन से रात छोटे अऊ दिन ह बड़े होना शुरु हो जाथे। दिन बड़े होय से परकास (अंजोर) जादा अऊ रात छोटे होय से अंधियार कम होथे। इही ल कहे गेहे –…
Read Moreभुर्री तापत हे
बाढहे हाबे जाड़ ह, सब झन भुररी तापत हे। कतको ओढ ले साल सेटर, तभो ले हाथ कांपत हे। सरसर सरसर हावा चलत, देंहें घुरघुरावत हे। नाक कान बोजा गेहे, कान सनसनावत हे। पानी होगे करा संगी, हाथ झनझनावत हे। कांपत हाबे लइका ह, दांत कनकनावत हे। गोरसी तीर में बइठे बबा, हाथ गोड़ लमावत हे। साल ओढके डोकरी दाई, चाहा ल डबकावत हे। गरम गरम पानी में, कका ह नहावत हे। गरमे गरम चीला ल, काकी ह बनावत हे। थरमा मीटर में घेरी बेरी, डिगरी ल नापत हे। बाढहे…
Read Moreछेरछेरा के तिहार – लइका मन पारत गोहार
हमर भारत देश में पूजा पाठ अऊ दान के बहुत महत्व हे। दान करे बर जाति अऊ धरम नइ लागय। हमर भारतीय संसकिरती में हिन्दू, मुसलिम, सिख, ईसाई, जैन सबो धरम के आदमी मन दान धरम करथे अऊ पून कमाथे। हमर वेद पुरान अऊ सबो धरम के गरन्थ में दान के महिमा ल बताय गेहे। हमर छत्तीसगढ़ में भी अन्नदान करे के बहुत महत्व हे। इंहा के मनखे मन बड़ दयालु हे। कोनों आदमी ल भूखन मरन नइ देख सकय। एकरे सेती दूसर परदेस के मनखे मन घलो आके इंहा बस जथे। छत्तीसगढ़…
Read Moreनवा साल मुबारक हो
बड़े मन ल नमस्कार, अऊ जहुंरिया से हाथ मिलावत हों। मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो। पढहैया के बुद्धि बाढहे, होवय हर साल पास। कर्मचारी के वेतन बाढहे, बने आदमी खास। नेता के नेतागिरी बाढहे, दादा के दादागिरी। मिलजुल के राहव संगी, झन होवव कीड़ी बीड़ी। बैपारी के बैपार बाढहे, जादा ओकर आवक हो। मोर डाहन ले संगी, नवा साल मुबारक हो। किसान के किसानी बाढहे, राहय सदा सुख से। मजदूर के मजदूरी बाढहे, कभू झन मरे भूख से। कवि के कविता बाढहे, लेखक के लेखनी। पत्रकार के…
Read Moreनारी हे जग में महान
नारी हे जग में महान संगी, नारी हे जग में महान। मय कतका करंव बखान संगी, नारी हे जग में महान। लछमी दुरगा पारवती अऊ, कतको रुप में आइस। भुंइया के भार उतारे खातिर, अपन रुप देखाइस। पापी अत्याचारी मन से, मुक्ति सब ल देवाइस। नारी हे जग में महान संगी, नारी हे जग में महान। मत समझो तुमन येला अबला, इही हे सबले सबला। नौ महीना कोख में राखके, पालिस पोसीस सबला। कतको दुख ल सहिके संगी, बनाइस हे हमला महान। नारी हे जग में महान संगी, नारी हे…
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