भक्ति के जोत जलाले

भक्ति के जोत जलाले संगी , इही ह काम तोर आही । ए जिनगी के काहे ठिकाना, माटी म मिल जाही । चार दिन के चटक चंदैनी , फेर अंधियारी राते । करम धरम तै कर ले संगी , सुख से जिनगी बिताले । तर जाही तोर पापी चोला, नाम तोरे रहि जाही । ए जिनगी के काहे ठिकाना, माटी म मिल जाही । माता बर तै चुनरी फुंदरी, छप्पन भोग लगाये । घर में दाई तरसत हाबे, पानी नइ पीयाये । पहिली पूजा दाई के कर तैं, माता खुस…

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पीतर

जिंयत भर ले सेवा नइ करे , मरगे त खवावत हे । बरा सोंहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे । अजब ढंग हे दुनिया के, समझ में नइ आये । जतका समझे के कोसीस करबे, ओतकी मन फंस जाये । दाई ददा ह घिलर घिलर के, मांगत रिहिसे पानी । बुढत काल में बेटा ह , याद करा दीस नानी । दाई ददा ह मरगे तब , आंसू ल बोहावत हे । बरा सोंहारी रांध रांध के, पीतर ल मनावत हे । एक मूठा खाय ल नइ देवे,…

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तीजा-पोरा के तिहार

छत्तीसगढ़ में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे अऊ लगभग सब तिहार ह खेती किसानी से जुडे रहिथे। काबर के छत्तीसगढ़ में खेती किसानी जादा करथे। वइसने किसम से एक तिहार आथे पोरा अऊ तीजा के। पोरा तिहार ल भादो महिना के अमावस्या के दिन मनाय जाथे। अहू तिहार ह खेती किसानी से जुड़े हवे। पोरा तिहार मनाय के बारे में कहे जाथे कि इही दिन अन्न माता ह गरभ धारन करथे। माने धान के पउधा में इही दिन दूध भराथे।एकरे पाय ए तिहार ल ओकर खुसी के रुप में मनाय…

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लोग लइका बर उपास – कमरछट के तिहार

छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहे जाथे । काबर इंहा धान के फसल जादा होथे ।इंहा के जादातर मनखे मन ह खेती के काम करथे । किसान मन ह अपन खेत में हरियर हरियर धान पान ल देख के हरेली तिहार मनाथे । हरेली तिहार के बाद से छत्तीसगढ़ में बहुत अकन तिहार मनाये जाथे । ओमे से एक परमुख तिहार कमरछठ भी हरे । कमरछठ ल महिला मन अपन लोग लइका के सुख सांति अऊ समरिदधि के खातिर मनाथे । भादो महिना के अंधियारी पांख के छठ के दिन कमरछठ मनाय…

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भाई -बहिनी के तिहार – राखी

(राखी तिहार विशेष) भाई बहिनी के सबले पवित्र तिहार हरे राखी ह। बचपन में भाई बहिनी मन कतको लड़ई झगरा होत राहय, फेर राखी के दिन ओकर मन के प्रेम ह देखे बर मिलथे । राखी तिहार के अगोरा भाई बहिनी दूनो झन मन करत रहिथे। कब मनाथे – राखी के तिहार ल सावन महिना के पूरनिमा के दिन मनाय जाथे ।ए दिन भाई बहिनी मन बिहनिया ले नहा धो के तईयार हो जाथे ।भगवान के भी पूजा पाठ कर ले थे ओकर बाद बहिनी मन ह रोली, अकछत, कुमकुम…

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सावन अऊ शिव

सावन महिना में शिव , सावन अऊ सोमवार के विशेष महत्व हे । एकरे पाय छोटे से लेकर बडे़ तक सावन सोमवारी ल मनाथे । सावन महिना के सोमवार के पूजा अऊ उपवास करे से भगवान शिव ह जल्दी प्रसन्न होथे । ये व्रत ह बहुत ही शुभदायी अऊ फलदायी होथे । सावन मास में शिव के पूजा करे से 16 सोमवार व्रत के समान फल मिलथे । भगवान शंकर के विधि विधान से पूजा करे से घर में सब परकार के सुख शांति अऊ लछमी के प्राप्ति होथे ।…

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बम बम भोले

हर हर बम बम भोलेनाथ के , जयकारा लगावत हे । कांवर धर के कांवरिया मन , जल चढाय बर जावत हे । सावन महिना भोलेनाथ के, सब झन दरसन पावत हे । धुरिहा धुरिहा के सिव भक्त मन , दरस करे बर आवत हे । कोनों रेंगत कोनों गावत , कोनों घिसलत जावत हे । नइ रुके वो कोनों जगा अब , भले छाला पर जावत हे । आनी बानी के फल फूल अऊ , नरियर भेला चढावत हे । दूध दही अऊ चंदन रोली , जल अभिसेक करावत…

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मोर गांव कहां गंवागे

मोर गांव कहां गंवागे संगी, कोनो खोज के लावो। भाखा बोली सबो बदलगे, मया कहां में पावों। काहनी किस्सा सबो नंदागे, पीपर पेड़ कटागे । नइ सकलाये कोनों चंउरा में, कोयली घलो उड़ागे। सुन्ना परगे लीम चंउरा ह, रात दिन खेलत जुंवा । दारु मउहा पीके संगी, करत हे हुंवा हुंवा । मोर अंतस के दुख पीरा ल, कोन ल मय बतावों मोर गांव कहां ………………….. जवांरा भोजली महापरसाद के, रिसता ह नंदागे । सुवारथ के संगवारी बनगे, मन में कपट समागे । राम राम बोले बर छोड़ दीस, हाय…

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भोरमदेव – छत्तीसगढ़ के खजुराहो

हमर देश में छत्तीसगढ़ के अलग पहिचान हे। इंहा के संस्कृति, रिती रिवाज, भाखा बोली, मंदिर देवाला, तीरथ धाम, नदियां नरवा, जंगल पहाड़ सबके अलगे पहिचान हे। हमर छत्तीसगढ़ में कोनों चीज के कमी नइहे। फेर एकर सही उपयोग करे के जरुरत हे। इंहा के परयटन स्थल मन ल विकसित करे के जरुरत हे। बहुत अकन परयटन स्थल के विकास अभी भी नइ होहे। जब तक सरकार ह एकर ऊपर धियान नइ दिही तब तक एकर विकास नइ हो सके। कबीरधाम जिला में एक जगा हे भोरमदेव एला छत्तीसगढ़ के…

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कन्या भोज (लघुकथा )

आज रमेश घर बरा,सोंहारी,खीर ,पुरी आनी बानी के जिनीस बनत राहे । ओकर सुगंध ह महर महर घर भर अऊ बाहिर तक ममहावत राहे। रमेश के नान – नान लइका मन घूम घूम के खावत रिहिसे । कुरिया में बइठे रमेश के दाई ह देखत राहे, के बहू ह मोरो बर कब रोटी पीठा लाही ।भूख के मारे ओकर जी ह कलबलात राहे ।फेर बहू के आदत ल देखके बोल नइ सकत राहे ।बिचारी ह कलेचुप खटिया में बइठ के टुकुर – टुकुर देखत राहे । थोकिन बाद में पारा…

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