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गीत

मेला जाबोन : महेन्द्र देवांगन “माटी” के गीत

चल संगी घुमेल जाबोन, माघी पुन्नी के मेला हाबे अब्बड़ भीड़ भाड़, नइ जावन अकेल्ला। हर हर गंगे असनान करके, पानी हम चढाबो दरसन करबो महादेव के, वोला हम मनाबो। भीड़ लगे हे मंदिर में, होवत पेलम पेला चल संगी घुमेल जाबोन, माघी पुन्नी के मेला । संग में जाबोन संग में आबोन,अब्बड़ मजा आही […]

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कविता

बसंत के बहार

सुघ्घर ममहावत हे आमा के मऊर जेमे बोले कोयलिया कुहूर कुहूर । गावत हे कोयली अऊ नाचत हे मोर, सुघ्घर बगीचा के फूल देखके ओरे ओर। झूम झूम के गावत हे नोनी मन गाना, गाना के राग में टूरा ल देवत ताना । बच्छर भर होगे हे देखे नइहों तोला, कहां आथस जाथस बतावस नहीं […]

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कविता

छब्बीस जनवरी मनाबो : वंदे मातरम गाबोन

छब्बीस जनवरी मनाबो छब्बीस जनवरी मनाबो संगी, तिरंगा हम फहराबो। तीन रंग के हमर तिरंगा, एकर मान बढाबो । ए झंडा ल पाये खातिर, कतको जान गंवाइस। कतको बीर बलिदान होगे, तब आजादी आइस । हमर तिरंगा सबले प्यारा , लहर लहर लहराबो। छब्बीस जनवरी मनाबो संगी, तिरंगा हम फहराबो। चंद्रशेखर आजाद भगतसिंह, जनता ल […]

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कविता

छत्तीसगढ़ी भासा

छत्तीसगढ़ी भासा ल पढबो अऊ पढाबोन हमर राज ल जुर मिलके, सबझन आघू बढाबोन । नोनी पढही बाबू पढही, पढही लइका के दाई । डोकरा पढही डोकरी पढही, पढही ममा दाई । इसकूल आफिस सबो जगा,छत्तीसगढ़ी में गोठियाबोन। अपन भासा बोली ल, बोले बर कार लजाबोन । कतको देश विदेश में पढले, फेर छत्तीसगढ़ी ल […]

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कहानी

कहानी : पछतावा

एक गाँव में एक झन बुधारू नाम के मनखे राहे ।वोहा बचपन से अलाल रहे।ओकर दाई ददा ह ओला इस्कूल जाय बर अब्बड़ जोजियाय ।त बुधारू ह अपन बस्ता ल धर के निकल जाय,अऊ चरवाहा टूरा मन संग बांटी भंवरा खेलत राहय।छुट्टी होय के बेरा में फेर बस्ता ल धरके अपन घर आ जाय । […]

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कविता

कविता – सब चीज नंदावत हे

चींव चींव करके छानही में चिरइया गाना गावाथे | आनी बानी के मशीन आय ले सब चीज नंदावत हे || धनकुट्टी मिल के आय ले ढेंकी ह नंदागे घरर घरर जांता चले अब कोन्टा में फेंकागे गली गली में बोर होगे तरिया नदिया अटागे | घर घर में नल आगे कुंवा ह नंदागे | पेड़ […]

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कविता

कविता-समाज ल आघू बढ़ाबोन

जुर मिल के काम करके हम नवा रसता बनाबोन | नियाव धरम ल मानके संगी समाज ल आघू बढ़ाबोन || नइ होवन देन हमन अपन रिति रिवाज के अपमान समय के साथ चलके संगी बढ़ाबोन एकर मान | सबके साथ नियाव करबो अन्याय होवन नइ देवन राजा रंक सब एक समान हे कोनो के जान […]

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कविता

गांव ल झन भुलाबे अउ किसान

गांव ल झन भुलाबे शहर में जाके शहरिया बाबू गांव ल झन भुलाबे | नानपन के संगी साथी ल सुरता करके आबे || गांव के धुर्रा माटी म खेलके बाढ़हे हे तोर तन ह आमा बगीचा अऊ केरा बारी म लगे राहे तोर मन ह आवाथे तीहार बार ह सुरता करके आबे शहर में जाके […]

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कविता

कविता -खुरसी के खेल

आजकाल के जमाना मे भइया खुरसी के हाबे मांग जेला देखबे तेला संगी खींचत हे खुरसी के टांग | खुरसी के खातिर नेता मन का का नइ करत हाबे अपन सुवारथ सबो साधत कहां ले सुराज लाबे | बड़े बड़े आशवासन देके जनता ल लुभाथे खुरसी के मिलते साठ सबला भुला जाथे | भुखमरी गरीबी […]

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कविता

सगा आवत हे

कांव कांव कौआ ह, बरेण्डी मे नरियावत हे | लागथे आज हमर घर कोनो सगा आवत हे|| बोरिंग ले पानी डोहार के दुवार ल छींचत हे | बिहनिया ले दाई ह खोर ल लीपत हे || लकर धकर छुही मे रंधनी ल ओटियावत हे | दार चांउर ल निमार डर बहु संग गोठियावत हे|| चौसेला […]