होली आवत हे

आगे बसंत संगी,आमा मऊरावत हे बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे । कुहू कुहू कोयली ह,बगीचा में कुहकत हे। फूले हे सुघ्घर फूल, भंवरा रस चुहकत हे। आनी बानी के फूल मन,अब्बड़ ममहावत हे। बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे। लइका मन जुर मिल के, छेना लकड़ी लावत हे। अंडा के डांग ल,होली में गड़ियावत हे। नाचत हे मगन होके, फाग गीत गावत हे। बाजत हे नंगाड़ा अब,होली ह आवत हे। डोरी ल लमाके सबो, रसता ल छेंकत हे। कोन आवत जावत तेला, सपट के देखत हे। भुलक…

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कविता: बराती

गांव गांव में बाजत हे, मोहरी अऊ बाजा | सूट बूट में सजे हे आज दूल्हा राजा | मन ह पुलकत हाबे जाबोन बरात | अब्बड़ मजा आही खाबोन लड्डू अऊ भात | बरतिया के रहिथे टेस अड़बड़ भारी | पीये हे दारु अऊ देवत हे गारी | कूद कूद के बजनिया मन बाजा बजावत हे | ओले ओले के धुन मे टूरा मन नाचत हे | घाम के मारे सब बेंदरा कस ललियावत हे | एती वोती देख के आंखी मटकावत हे | पहिने हे चशमा अऊ बांधे हे…

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कविता: फूट

वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट बजार में जात्ते साठ आदमी मन लेथे सबला लूट | मन भर खाले तेंहा फूट खा के झन बोलबे झूठ फोकट में खाना हे त आजा उतार के अपन दूनों बूट वाह रे हमर बखरी के फूट फरे हाबे चारों खूंट | लट लट ले फरे हे एसो फूट राखत रहिथे समारु ह पी के दू घूंट चोरी करथे तेला तो देथे गारी छूट मिरचा अऊ लिमऊ ल बांधे हों मारे झन कोनो मूठ जतका खाना हे खाले तेंहा फूट…

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भुंइया के भगवान

मोर छत्तीसगढ़ के किसान जेला कहिथे भुंइया के भगवान | भूख पियास ल सहिके संगी उपजावत हे धान | बड़े बिहनिया सुत उठ के नांगर धरके जाथे | रगड़ा टूटत ले काम करके संझा बेरा घर आथे | खून पसीना एक करथे तब मिलथे एक मूठा धान | मोर छत्तीसगढ़ के किसान जेला कहिथे भुंइया के भगवान | छिटका कुरिया घर हाबे अऊ पहिनथे लंगोटी | आंखी कान खुसर गेहे चटक गेहे बोड्डी | करजा हाबे उपर ले बेचा गेहे गहना सुता | साहूकार घर में आ आके बनावत हे…

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