हमर घर गाय नइए, अब्बड़ बडा बाय होगे।द्वापर मं काहयं, लेवना-लेवनाकलजुग मं कहिथें, देवना-देवनाकोठा म गाय नहीं, अलविदा, टाटा बाय होगे।हमर घर गाय नइए…गिलास, लोटा धरे-धरेमोर दिमाक आंय-बांय होगेखोजे म दूध मिले नहीं,लाल-लाल चाय होगे,दूध टूटहा लइका ल जियाय बर, बड़ा बकवाय होगे…दूध बिन कहां बनहीं,खोवा अउ रबड़ीखाय बर कहां मिलही,तसमई अउ रबड़ीपीके लस्सी, जिए सौ साल अस्सी, फेर अब तो तरसाय होगे…कब वो बेरा आहीदूध-दही के नदिया बोहाही,हे माखन चोर, सुन तो मोरदूध-दही मं छत्तीसगढ़ ल बोरमरत बेरा, मनखे ल, गाय के पूछी, धराय बर, सबके आम राय होगे…मकसूदन…
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बरीवाला के कहिनी : बंटवारा
‘मोर बंटवारा के कमती जमीन हे। बंटवारा में मिले घर-दुवार ह टूटत-फुटत हे। बड़े भइया सदाराम जेठासी काबर देबो। दूनों बरोबर-बरोबर बांटबो। मोर बंटवारा नीरस हे। सदाराम के बंटवारा सरस हे। बंटवारा दुवारा होना चाही। सरपंच ह कहिस कस खेदूराम, तुंहर बंटवारा होय सात आठ बरस बीतगे। ये सब बात ल बंटवारा के दिन गोठियाना रिहिस। अब पछताय का होत हे जब चिड़िया चुगगे खेत।’ तइहा के गोठ ल बइहा लेग गे।’ बंटवारा सुनके सब के जी हर कांपे बर धर ले थे। बंटवारा दु:खद पल आय। बंटवारा मं, एक…
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