हरमुनिया – मंगत रविन्‍द्र के कहिनी

रमाएन तो कतको झन गाथें पर जेठू के रमाएन गवई हर सब ले आन रकम के होथे। फाफी राग…. रकम-रकम के गीद ल हरमुनिया म उतारे हे। जब पेटी ल धरथे ता सब सुनईया मन कान ल टेंड़ देथे। ओकर बिना तो रमाएन होबे नई करै। सरसती मंइया तैंहर बीना के बजईया…. उसाले पांव बाजे घुंघरू ओ मइया छनानना, उसाले पांव…..। नानपन ले जिंहा रमाएन होवै तिहां सुने ल चल देवै एक कोन्टा म बइठ के चित्त लगा के सुनै। कोन रात कोन बिकाल ले घर म फिरै। रमाएन सुनत-सुनत…

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हरमुनिया – मंगत रविन्‍द्र के कहिनी

रमाएन तो कतको झन गाथें पर जेठू के रमाएन गवई हर सब ले आन रकम के होथे। फाफी राग…. रकम-रकम के गीद ल हरमुनिया म उतारे हे। जब पेटी ल धरथे ता सब सुनईया मन कान ल टेंड़ देथे। ओकर बिना तो रमाएन होबे नई करै। सरसती मंइया तैंहर बीना के बजईया…. उसाले पांव बाजे घुंघरू ओ मइया छनानना, उसाले पांव…..। नानपन ले जिंहा रमाएन होवै तिहां सुने ल चल देवै एक कोन्टा म बइठ के चित्त लगा के सुनै। कोन रात कोन बिकाल ले घर म फिरै। रमाएन सुनत-सुनत…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘सोनहा दीया’

चारों मुड़ा लेन्टर के घर…पिछोत म नीलगिरी के ऊँचपुर रूख, दिनरात फुरहुर बइहर परोसत रहै। अंगना कती के कंगुरा म परेवा के मरकी बंधाए रहै जेमा धंवरा-धंवरा परेंवा मन ए मरकी ले ओ मरकी दउंड़-दउंड़ के घुटुर-घुटुर बोलत रहैं। बारी म पड़ोरा के पार लम्बा-लम्बा फर चुपचाप बोरमे हे। अंगना म बोरिंग के मुठिया सुरतावत अद्धर म टंगाए हे। सांझ कन अंधियारी के समाती म अघनिया के खोली म धीमिक-धीमिक दीया बरत रहै। अघनिया के तीर ओकर औतारे दु ठो बाबू… दाई के जांघ ल पोटारे चटके रहैं। अघनिया… पलंग…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘सोनहा दीया’

चारों मुड़ा लेन्टर के घर…पिछोत म नीलगिरी के ऊँचपुर रूख, दिनरात फुरहुर बइहर परोसत रहै। अंगना कती के कंगुरा म परेवा के मरकी बंधाए रहै जेमा धंवरा-धंवरा परेंवा मन ए मरकी ले ओ मरकी दउंड़-दउंड़ के घुटुर-घुटुर बोलत रहैं। बारी म पड़ोरा के पार लम्बा-लम्बा फर चुपचाप बोरमे हे। अंगना म बोरिंग के मुठिया सुरतावत अद्धर म टंगाए हे। सांझ कन अंधियारी के समाती म अघनिया के खोली म धीमिक-धीमिक दीया बरत रहै। अघनिया के तीर ओकर औतारे दु ठो बाबू… दाई के जांघ ल पोटारे चटके रहैं। अघनिया… पलंग…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘दुनो फारी घुनहा’

।। जीवन के सफर में जरूरत होती है एक साथी की।। ।।जैसे जलने के लिये दीप को जरूरत होती है एक बाती की।। भीख देवा ओ दाई मन…………। ओरख डारिस टेही ल सूरदास के…… जा बेटी एक मूठा चाउर दे दे, अंधवा-कनवा आय। महिना पुरे ए….. गांव म सूरदास, मांगे ल आथे। सियान ले नानकन लइका तलक सूरदास ल जानथे। अब्बड़ सीधवा ए… मन लागती तेकर इंहा मांग के खा लेय। मांगे म का के लाज? चोरी करे म डर हे…। कभू-कभू तो मुंहटा म लाठी ल भूंइया म ठेंसत…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘दुनो फारी घुनहा’

।। जीवन के सफर में जरूरत होती है एक साथी की।। ।।जैसे जलने के लिये दीप को जरूरत होती है एक बाती की।। भीख देवा ओ दाई मन…………। ओरख डारिस टेही ल सूरदास के…… जा बेटी एक मूठा चाउर दे दे, अंधवा-कनवा आय। महिना पुरे ए….. गांव म सूरदास, मांगे ल आथे। सियान ले नानकन लइका तलक सूरदास ल जानथे। अब्बड़ सीधवा ए… मन लागती तेकर इंहा मांग के खा लेय। मांगे म का के लाज? चोरी करे म डर हे…। कभू-कभू तो मुंहटा म लाठी ल भूंइया म ठेंसत…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘अगोरा’

बोर्रा….. अपन पुरता पोट्ठ हे। कई बच्छर के जून्ना खावत हे। थुहा अउ पपरेल के बारी भीतर चर-चर ठन बिही के पेड़…..गेदुर तलक ल चाटन नई देय। नन्दू के दाई मदनिया हर खाये- पीये के सुध नई राखय… उवत ले बुड़त कमावत रथे। नन्दू हर दाई ल डराय नहीं…। ददा बोर्रा हर आंखी गुड़ेरथे तभे नन्दू हर थोरथर भय खाथे। लइका के मया…सात धर के गोरस पियाये हे। दाई ए हर जानही मया पीरा ल, के कतका दु:ख-सुख म लइका ल अवतारे रथें। ढपकत बेरा ले कमा के फिरत मदनिया…

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मंगत रविन्‍द्र के कहिनी ‘अगोरा’

बोर्रा….. अपन पुरता पोट्ठ हे। कई बच्छर के जून्ना खावत हे। थुहा अउ पपरेल के बारी भीतर चर-चर ठन बिही के पेड़…..गेदुर तलक ल चाटन नई देय। नन्दू के दाई मदनिया हर खाये- पीये के सुध नई राखय… उवत ले बुड़त कमावत रथे। नन्दू हर दाई ल डराय नहीं…। ददा बोर्रा हर आंखी गुड़ेरथे तभे नन्दू हर थोरथर भय खाथे। लइका के मया…सात धर के गोरस पियाये हे। दाई ए हर जानही मया पीरा ल, के कतका दु:ख-सुख म लइका ल अवतारे रथें। ढपकत बेरा ले कमा के फिरत मदनिया…

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छत्तीसगढ़ी कहिनी किताब : गुलाब लच्‍छी

संगी हम आपके खातिर ‘गुरतुर गोठ’ म छत्तीसगढ के ख्यात साहित्यकार, कहानीकार श्री मंगत रविन्द्र जी के अवईया दिनन म प्रकासित होवईया कहानी संग्रह ‘गुलाब लच्छी’ के सरलग प्रकाशन करे के सोंचत हावन । इही उदीम म आज ये कहानी संग्रह के पहिली प्रस्तावना ‘दू आखर’ प्रकाशित करत हन तेखर बाद ले सरलग कुछ दिन के आड देवत ये संग्रह म प्रकाशित 18 कहनी ला प्रकासित करबोन । कहानीकार- मंगत रवीन्द्र ।। दु आखर ।। खेती पांती म मेड़पार, कोला बारी म बिंयारा, नाचा कुदा म तान तपट्टा, घर दुवार…

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छत्तीसगढ़ी कहिनी किताब : गुलाब लच्‍छी

संगी हम आपके खातिर ‘गुरतुर गोठ’ म छत्तीसगढ के ख्यात साहित्यकार, कहानीकार श्री मंगत रविन्द्र जी के अवईया दिनन म प्रकासित होवईया कहानी संग्रह ‘गुलाब लच्छी’ के सरलग प्रकाशन करे के सोंचत हावन । इही उदीम म आज ये कहानी संग्रह के पहिली प्रस्तावना ‘दू आखर’ प्रकाशित करत हन तेखर बाद ले सरलग कुछ दिन के आड देवत ये संग्रह म प्रकाशित 18 कहनी ला प्रकासित करबोन । कहानीकार- मंगत रवीन्द्र ।। दु आखर ।। खेती पांती म मेड़पार, कोला बारी म बिंयारा, नाचा कुदा म तान तपट्टा, घर दुवार…

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