मोरो कोरा ल भर दे: मन्नीलाल कटकवार

हे राम! गजब मैं पापी, फोकट जनमेंव दुनियाँ म। कतका दिन होगे आए, नइए लइका कोरा म॥ जौन मोर ले पीछू आइन, उन हो गय हें लइकोरी। कोरा म पाके लइका, कुलकत हे जाँवर-जोड़ी ॥ सब धन-दौलत हे घर म, कोठी म धान हे जुन्ना। मोर दुखिया मन नइ मानै, एक ठन बिन घर हे सुन्ना॥ मोर सास-ननंद खिसियाथे, बोलियाथे पारा-टोला। छाती फाटे अस करथे, ठड़॒गी कइथें जब मोला॥ सब कइयथें तेला सहिथौ, छाती म पथरा धर के। मुँहले भाखा नइ बोलॉव, मरजाद रखे बर घर के। अंतस म सुलगे…

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अन्न कुंवारी के जवानी: मन्नीलाल कटकवार

अन्न कुंवारी के जवानी सब ल आशीष देत रे। मोटियारी कस मुसकावत हे, आज धान के खेत रे। असाढ़ महिना चरण पखारै, सावन तोर गुन गाव । भादों महिना लगर-लगर के, तोला खूब नहवावै। कुवांर महिना कोर गांथ के, तोला खूब समरावे। कातिक अंक अंग म तोर, सोनहा गहना पहिरावै । तोर जवानी देख सरग के, रंभा होगे अचेत रे। मोटियारी कस मुसकावत हे, आज धान के खेत रे॥ उमर जवानी के मस्ती म, कसमकसात हे चोली। ऐती ओती गिरगिर के, बइहर संग करै ठिठौली। बीच खेत ले करगा राणी,…

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