रइहीं तरिया म मनखे, पानी आबे,अमुआ डारी म बइठे जोहत रइहौं। घर म सुरता भुलाये, बइठे रहिबे,कोला बारी म मैंहा, ताकत रइहौं। बिना चिंता फिकर तैं, सोये रहिबे,बनके पहरी मैं, पहरा देवत रइहौं। तैंहा बनके बदरिया, बरसत रहिबे,मैं पियासे,पानी बर, तरसत रइहौं। मोर आघू म दूसर लंग हंसत रहिबे,घूंट पी पी के मैंहा रोवत रइहौं। दिया बाती बन तैंहा बरत रहिबे,मैंहा बन के पतंगा जरत रइहौं। मनोहर दास मानिकपुरी
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गंवइहा
मैं रइथौं गंवई गांव मं मोर नाव हे गंवइहा, बासी बोरे नून चटनी पसिया के पियइया। जोरे बइला हाथ तुतारी खांध म धरे नागर, मुंड़ म बोहे बिजहा चलै हमर दौना मांजर। पानी कस पसीना चूहै जूझै संग म जांगर, पूंजी आय कमाई हमर नौ मन के आगर। चार तेदूँ मउहा कोदइ दर्रा के खवइया, मैं रइथौं गंवई गांव मं मोर नाव हे गंवइहा। सावन भादो महिना संगी चले ल पुरवाई, मगन होके धान झूमैं झूला के झूलाई । झिमिर झिमिर पानी के संग निंदाई लगाई, मन ल मोहे खेती…
Read Moreसुरता हर आथे तोर
सपना सही तैं आये चल देहे मोला छोड़,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। आके तीर म पूछे तैंहा, सीट हावै खाली,कहाँ जाबे तैहा ग, मैं हा जाहूं पाली।छुटटा मागें सौ के,मया ल डारे घोर,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। रंग बिरंग के चूरी पहिरे छेव छेव म सोनहा,फूल्ली पहिरे नाक म,नग वाले तिनकोनहा।कोहनिया के कहे उठ,खुंदागे लुगरा छोर,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। सकुचावत अनगहीन,कहे जावत हावंव,छिन भर म का खोयेंव,पायेंव का बतावंव।हिरदे के पूंजी जमों,ले गये बटोर,सुरता हर आथे तोर,सुरता हर आथे तोर। नाव पता नई…
Read Moreमोर गाँव
बने रहै मोर बनी भूती ह, बनै रहै मोर गाँव,बने रहै मोर खपरा छानही,बर पीपर के छाँव। बड़े बिहनिहा बासत कुकरा, आथे मोला जगाये,करके मुखारी चटनी बासी,खाये के सुरता देवाये।चाहे टिकोरे घाम रहै या बरसत पानी असाढ़,चाहे कपावै पू ा मांघ, महिना के ठूठरत जाड.।ओढ़ ले कमरा खूमरी, तैहा बढाना हे पांव,बने रहै मोर खपरा छानही, बर पीपर के छाँव। गैंती, कुदरा, रापा, झउहा, नागर,जुवाड़ी तूतारी,गाड़ी बइला,कोपर दतारी,जनम के मोर संगवारी।सोझे जाथौं खेत तभो, लाढी डोरी धरे हंसिया,मेहनत के पुजारी मैं, किसानी मोर तपस्या।आंव बेटा मैं किसनहा के, कमिया हे…
Read Moreतोर दुआरी
सुरता के दियना, बारेच रहिबे,रस्ता जोहत तैं ढाढेंच रहिबे।रइही घपटे अंधियारी के रात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। मैं बनके हिमगिरी,तैं पर्वत रानी,मौसम मंसूरी बिताबो जिनगानी।कुलकत करबो अतंस के हम बात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। मैं करिया लोहा कसमुरचावत हावौं,तैं पारस आके तोर लंग मैं छुआजाहौं।सोनहा बनते मोर,बदल जाही जात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। आये मया बादर छाये घटा घन घोर हें,जुड़हा पुरवइया संग नाचत मन मोर हे।सावन भादो कस हिरदे हरियात,निरखत आहूं तभो तोर दुआरी। मनोहर दास मानिकपुरी
Read Moreछत्तीसगढ़िया
छत्तीसगढ के रहइया,कहिथें छत्तीसगढ़िया, मोर नीक मीठ बोली, जनम के मैं सिधवा। छत्तीसगढ के रहइया,कहिथें छत्तीसगढ़िया। कोर कपट ह का चीज ये,नइ जानौ संगी, चाहे मिलै धोखाबाज, चाहे लंद फंदी। गंगा कस पबरित हे, मन ह मोर भइया, पीठ पीछू गारी देवैं,या कोनो लड़वइया। एक बचन, एक बोली बात के रखइया, छत्तीसगढ़ के रहइया, कहिथें छत्तीसगढ़िया। देख के आने के पीरा, सोग लगथे मोला, जना जाथे ये हर जइसे झांझ झोला। फूल ले कोवर संगी, मोर करेजा हावै, मुरझाथे जल्दी, अति ह न सहावै। जहर महुरा कस एला, हंस हंस…
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