बांझ के पीरा-बांझ के सुख

लघुकथा‘तें मोला टूरा-टूरी नइ देस ना सुन्दरी, मे दूसर बिहाव करहूं तें मोला दोसदार मत कबे, काबर नी देत हस मोला तेंहा टूरा-टूरी। दू बच्छर ले जादा होगे फेर तोर पांव भारी नी होवत हे।’ भुलऊ ह अपन सुन्दरी नाम के गोसइन ल धमका के काहत राहय।‘मोर किस्मते मा नइ हे तेला का करहूं, तोला भारी पांव वाली गोसइन लाना हे ते ले आ, मोला कुछु नी कहना हे।’ सुन्दरी ताना ल सुन के फैसला सुना दीस।‘भुलऊ ल मौउका मिलिस। तहां ले राम्हीन ला बना के ले अइस जेन साल…

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राजा – नान्हे कहिनी

देवकी अपन बैसाखी ल देख के सोचे का होगे ए टूरा मन ल घेरी-बेरी आ-आ के बिहाव के विचार रखंय। आज सब्बो झन मन मुंहु फेर के भागत हाबे। ओतकी बेर अरविंद अइस, जेन ल देख के देवकी ह थर्रागे, काबर कि करिया कुकुर संग कोन बिहाव करही कहिके वोखर खूब हंसी उड़ाय रीहिस। अरविंद कीहिस- मेहा बैसाखी के सहारा ले चलत देखे बर आय हंव। अऊ चलत देख के बड़ खुस हांवव, अब कोनों फिकर नई हे। आराम से चलत फिरत अपन नौकरी कर सकत हव, कोनों सहारा के…

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बुधारू के जीवन

बूढ़त काल में खेती ल रेंढ़त हस। ते हमला कहिबे न ददा, जा बेटा बुधारू भारा करपा खेती-खार मे परे हे, गाड़ा पीढ़ा खोज के लान डार अऊ धान-पान ल मिंज डार। हमन तो नी जा सकन ददा। चाहे कोनो चोराय, चाहे कोनो लुकाय। बुधारू अपन बाप ल खिसिया-खिसिया के काहत रथे। बुधारू के पुर्रू ददा ह खेती खार ल परे डरे देखे त ओकर मन ल रोआसी आ जथे। अतका खरचा पानी करके धान-पान ल बोए हन अउ आए दिन में दूसर मन ह लेग जही- चोरा लीही त…

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