अब तो करम के रहिस एक दिन बाकी कब देखन पाबों राम लला के झांकी हे भाल पांच में परिन सबेच नर नारी देहे दुबवराइस राम विरह मा भारी दोहा – सगुन होय सुन्दर सकल सबके मन आनंद। पुर सोभा जइसे कहे, आवत रघुकुल चंद।। महतारी मन ला लगे, अब पूरिस मन काम कोनो अव कहतेच हवे, आवत बन ले राम जेवनी आंखी औ भूजा, फरके बारंबार भरत सगुन ला जानके मन मां करे विचार अब तो करार के रहिस एक दिन बाकी दुख भइस सोच हिरदे मंगल राम टांकी…
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पद्मश्री डॉ॰ मुकुटधर पाण्डेय के कविता
प्रशस्ति सरगूजा के रामगिरी हे मस्तक मुकुट सँवारै, महानदी ह निर्मल जल मा जेकर चरन पखारै। राजिम औ सिवरीनारायण छेत्र जहां छबि पावै, ओ छत्तिसगढ़ के महिमा ला भला कवन कवि गावै। है हयवंसी राजा मन के रतनपूर रजधानी, गाइस कवि गेपाल राम परताप सुअमरित बानी। जहाँ वीर गोपालराय काकरो करै नइ संका, जेकर नाम के जग जाहिर डिल्ली मा बाजिस डंका। मंदिर देउहर ठठर ठउठर आजा ले खड़े निसानी, कारीगरी गजब के जेमा मूरती आनी बानी। ए पथरा के लिखा, ताम के पट्टा अउ सिवाला, दान धरम अठ बल…
Read Moreपितर पाख मा साहित्यिक पुरखा के सुरता : पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय
हाट्स एप ग्रुप साहित्यकार में श्रीमती सरला शर्मा अउ अरूण निगम ह पितर पाख मा पुरखा मन के सुरता कड़ी म हमर पुरखा साहित्यकार पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय के रचना प्रस्तुत करे रहिन हे जेला गुरतुर गोठ के पाठक मन बर सादर प्रस्तुत करत हन – छायावाद के जन्मदाता मुकुट धर पाण्डे ल आखर के अरघ, कालिदास के मेघदूत खण्डकाव्य के छत्तीसगढ़ी अनुवाद … कैलास परबत के कोर मं हिमगिरि ….कतका सुग्घर … “हरगिरि के अंचल मं अलका के सोभा हे कइसे , पीतम के कोर मं बइठे प्राण पियारी जइसे ।…
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