में नो हों महराज: नारायण लाल परमार

एक ले एक हे हुसियार ,में नो हों महराज। करे सब करिया कारोबार, मे नो हो महराज॥ कनवा ला कनवा कहइया होहीं कोन्हो दूसर, गउ के किरिया हे हवलदार, मे नो हों महराज ॥ सब के बांटा ला अपन मान के जे खावत हें, कोन्हों कुकुर होही सरकार, मे नो हों महराज॥ देस ला कतकोझन, मुसुवा समझ के भूंजत हें, होहीं अइसन केउ हजार, मे नो हो महराज॥ गारी-गुप्ता, डंडा-बंधक, सबके सरता हे, चुहकत हे कोन अब कुसियार, मे नो हों महराज॥ गाय ला दाई अउ छेरी ला कहो सब…

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गांव अभी दुरिहा हे : नारायणलाल परमार

तिपे चाहे भोंभरा, झन बिलमव छांव मां जाना हे हमला ते गांव अभी दुरिहा हे। कतको तुम रेंगाव गा रद्दा हा नइ सिराय कतको आवयं पडाव पांवन जस नई थिराय तइसे तुम जिनगी मां, मेहनत सन मीत बदव सुपना झन देखव गा, छांव अभी दुरिहा हे। धरती हा माता ए धरती ला सिंगारो नइ ये चिटको मुसकिल हिम्मत ला झन हारो ऊंच नीच झन करिहव धरती के बेटा तुम मइनखे ले मइनखे के नांव अभी दुरिहा हे। – नारायणलाल परमार चंदैनी गोंदा के लोकप्रिय प्रसिद्ध गीत

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हे राम : नारायण लाल परमार के नवगीत

दुनिया मां नइये कखरो ठिकाना – मनखे ठाढ सुखावत हे राम, मनखे ठाढ सुखावत हे राम। झन पूछ भइया हाले हवाल मारिस ढलत्ती येसो दुकाल पथरा होगे जिहाँ पछीना धुर्रा फकत उडा़वत हे राम। का पुन्नी का फागुन तिहार आठों पहर दिखै मुंधियार धरम इमान ह देखते देखत गजट बरोबर चिरावत हे राम। आँही बाँही नइये चिन्हार जतका दिखथे सबो लचार फोकट के धमकी-चमकी देथे, पागी पटुका नंगावत हे राम। – नारायण लाल परमार

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साहित्यिक पुरखा मन के सुरता : नारायणलाल परमार

अँखियन मोती मन के धन ला छीन पराइस टूटिस पलक के सीप उझरगे पसरा ओकर बाँचे हे दू चार कि अँखियन मोती ले लो । आस बुतागे आज दिया सपना दिखत हे सुन्ना परगे राज जीव अंगरा सेंकत हे सुख के ननपन में समान दुख पागे हावै काजर कंगलू हर करियाइस जम चौदस के रात। बारिस इरखा आगी में बेचै राख सिंगार सहज सुरहोती ले लो कि अँखियन मोती ले लो ।। – नारायणलाल परमार

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नारायण लाल परमार के कबिता

मन के धन ला छीन पराईस टूटिस पलक के सीप उझर गे पसरा ओखर बांचे हे दू चार कि अखिंयन मोती ले लो । आस बंता गे आज दिया सपना दिखता हे सुन्ना परगे राज जीव अंगरा सेंकत हे सुख के ननपन में समान दुख पाने हावै चारो खुंट अधियार के निंदिया जागे हावै काजर कंगलू हर करियायिस जम चौदस के रात बारिस इरखा आगी में बेंचै राख सिगार सहज सुरहोती ले लो । कि अंखिंयन मोती ले लो । नारायण लाल परमार

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