अनिल जांगड़े गौंतरिहा के छत्तीसगढ़ी गीत के किताब महुंआ झरे झंउहा-झंउहा पढ़े बर मिलीस। पढ़के मन ला संतुष्टि मिलिस गीत म सबो परकार के रस के सवाद हवय। छत्तीसगढ़ी महतारी के सुग्घर बरनन अइसन बिखर गे हे। ओकर परती मन पियार अउ सरध्दा से झुक गे। पहिली गीत म कवि कहत रहिन- ‘सरग बराबर ये भुईया जिंहा बसे हे संत गियानी- चरन धोवत गंगा-जमुना हे, अमरित जस हवे पानी।’ अब्बड़ पावन अउ सुग्घर बरनन हवय। अउंटत लहू चूसे पसीना म ‘दया मया के तिरिथ कुरिया नवा सुरूज गदहईया के’ कहिके…
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