मंहू पढ़े बर जाहूं : कबिता

ये ददा गा, ये दाई वो, महूं पढ़े बर जाहूं।पढ़-लिख के हुसियार बनहूं, तूंहर मान बढ़ाहूं॥भाई मन ला स्कूल जावत देखथौं,मन मोरो ललचाथे।दिनभर घर के बुता करथौं,रतिहा उंघासी आथे।भाई संग मोला स्कूल भेजव, दुरपुतरी बन जाहूं।ये ददा गा, ये दाई वो, महूं पढ़े बर जाहूं॥बेटा-बेटी के भेद झन करव,बेटी ला घलो पढ़ावव।पढ़ा लिखा के आघू बढ़ावव,थोरको झन लजावव।काम-बुता संग पढ़हूं-लिखहूं, तुंहर हाथ बंटाहूं।ये ददा गा, ये दाई वो, महूं पढ़े बर जाहूं॥सीता-सावित्री, सती अनुसुइया,मीरा-सदनकसाई।दुरपती, सुलोचना, सबरी मइय्या,दुर्गा, लक्ष्मीबाई।इंदिरा, प्रतिभा, सुनीता, कल्पना जइसन मंय बन जाहूं।ये ददा गा, ये दाई वो,…

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चौमास : कबिता

जब करिया बादर बरसे, सब तन मन ह हरषे।चम-चम बिजुरी ह चमके, घड़-घड़ बदरा ह गरजे॥तब आये संगी चौमास रे…1. रुमझूमहा बरसे पानी, चुहे ले परवा छानी।पानी ले हे जिनगानी, हांस रे जम्मो परानी॥जिनगी के इही आस रे…2. गली-गली चिखला माते, नान्हे लइका मन नाचेचिरई चिरगुन ह नाचे, माटी हर महमाए।भुइंया के बुझाए पियास रे…3. भीजे ले धरती के कोरा, नाचे मंजूर मन मोरा।जब आए आंधी बरोड़ा, टूट जाए कतको डेरा॥झन होहू संगी उदास रे…4. तरिया डबरी छलकाए नरवा-नदिया उफनाए।कोरा भुइंया के हरियाए, दादुर राम मल्हार गाए॥तब बदरा ह आये…

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भगत के बस म भगवान – लोककथा

गजब दिन के बात आय। महानदी, पैरी अऊ सोंढूर के सुघ्घर संगम के तीर म एक ठन नानकुन गांव रिहिस हे। नदिया के तीर म बसे गांव ह निरमल पानी धार म धोवाके छलछल ले सुघ्घर दिखय। गांव के गली-खोर ह घलो गउ के गोबर म लिपाय मार दगदग ले दिखत राहय। कोन्हो मेर काकरो घर- दुवार के भुलकी ले मतलहा बसउना पानी नइ निकलय। चौंरा मन घलो बर लाम चाकर लिपाय-पोताय दिखत राहय। भरे मंझनिया लाहकत कोन्हो काकरो चांवरा, परछी म ढलंग जावय त पट ले सुघ्घर नींद पर…

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