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कविता

धरती के बेटा

तन बर अन्न देवइया, बेटा धरती के किसान। तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥ सरदी, गरमी अऊ बरसा, नई चिनहस दिन -राती। आठों पहर चिभिक काम म, हाथ गड़े दूनों माटी॥ मुंड म पागा, हाथ तुतारी, नांगर खांध पहिचान। तोरे करम ले होथे, अपने देश के उत्थान॥ कतको आगू सुरूज उवे के, पहुंच […]

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कविता

जतन बर करन दीपदान

अइसन कुछु संगी रे, जतन हम करन। हरियर-हरियर परियावरन हम करन॥ बजबजावत परदूषन ले जिनगी के रद्दा, दूरिहा जिनगानी ले, घुटन हमन करन। डार देहे बस्सई मन, ठांव-ठांव म डेरा, जउन भर दे ममहई ले, चमन हम करन। रहि नई गय आज कहूं जंगल के रउनक, मनबोधना फेर, वन, उपवन हम करन। नंगत कटत हावय […]