नारी सक्ती जगाना हे – दारु भटठी बंद कराना हे

बसंती ह अपन गोसइन बुधारू ल समझात रहिथे के – तेंहा रात दिन दारू के नशा में बुड़े रहिथस। लोग लइका घर दुवार के थोरको चिंता नइ करस ।अइसने में घर ह कइसे चलही ।दारू ल छोड़ नइ सकस ? बुधारू ह मजाक में कहिथे – मेंहा तो आज दारू ल छोड़ देंव वो। बसंती चिल्लाथे — कब छोड़े हस, कब छोड़े हस ? फोकट के छोड़ देंव कहिथस । बुधारू – अरे आज होटल में बइठे रेहेंव न,आधा बाटल दारू ल उही जगा छोड़ देंव । बसंती — हाँ…

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