दानलीला कवितांश

जतका दूध दही अउ लेवना। जोर जोर के दुध हा जेवना।। मोलहा खोपला चुकिया राखिन। तउन ला जोरिन हैं सबझिन।। दुहना टुकना बीच मढ़ाइन। घर घर ले निकलिन रौताइन।। एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक। दौरी में फांदे के लाइक।। कोनो ढेंगी कोनो बुटरी। चकरेट्ठी दीख जइसे पुतरी।। एन जवानी उठती सबके। पंद्रा सोला बीस बरिसि के।। काजर आंजे अंलगा डारे। मूड़ कोराये पाटी पारे।। पांव रचाये बीरा खाये। तरुवा में टिकली चटकाये।। बड़का टेड़गा खोपा पारे। गोंदा खोंचे गजरा डारे।। पहिरे रंग रंग के गहना। ठलहा कोनो अंग रहे ना।।…

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दान लीला के अंश : पं. सुन्दरलाल शर्मा

पं. सुन्दरलाल शर्मा ल छत्तीसगढी़ पद्य के प्रवर्तक माने जाथे। सबले पहिली इमन छत्तीसगढी़ मं ग्रंथ-रचना करिन अउ छत्तीसगढी़ जइसे ग्रामीण बोली (अब भाषा) मं घलोक साहित्य रचना संभव हो सकथे ए धारणा ल सत्य प्रमाणित करे गीस। इंखर ‘दान लीला’ ह छत्तीसगढ मं हलचल मचा दे रहिस हे। ओ समें कुछ साहित्यकार मन इंखर पुस्तक के स्वागत करिन अउ कुछ मन विरोध तको करिन। मध्यप्रदेश के ख्याति प्राप्त साहित्यकार पण्डित रघुवरप्रसाद द्विवेदी ह ओ समें के ‘हितकारिणी पत्रिका’ मं ए पुस्तक के अड़बड़ करू आलोचना करिन। तेखर बाद भी…

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