लोककथा सतवंतिन ह, अउ मुड़ म बोहे लकड़ी के बोझा ल धिरलगहा अंगना म मढ़ाइस। एती लकड़ी ह माढ़िस अउ चार ठन बड़े-बड़े गंऊहा डोमी सांप ह मुड़ी उठा के खड़े होगे। डोकरी ह देखके डर्रागे अउ सांप-सांप कहिके गोहार पारिस। सांप के नाव ल सुनके वोकर चारों झन बेटा मन लउठी धर के आइन अउ सांप ल मारे बर दौड़िन। अतका म सतवंतिन कथे- एला झन मारो हो, इहि मन मोर लकड़ी ल बांध के लानिस हे। त डोरी धर के नि जाय रते वो वोकर ससुर किहिस। अतका…
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गांव गंवई के चुनई
चुनई के समे आथे अउ चुनई परचार के संगे संग गांव-गांव, गली-गली, घर-घर म चारी-चुगली, इरषा, दोष, झगरा-लड़ई घला आ जथे। बाजा-गाजा, सभा, जुलुस, नाराबाजी के मारे गली-गली ह सइमो-सइमो करत रथे। जिहां चार झन मइनखे एक संग खडे क़भू देखउल नइ देय, उहां मोटर कार, फटफटी, सायकिल सब ओरी ओर लमिया जथे। देवाल-देवाल म उमेदवार मन के नाव लिखाय, जगा-जगा चुनाव चिनहा के छप्पा छपाय, झंडा, बेनर बंधाय, कोनो मेर पाल परदा तनाय, कोनो मेर सभा मंच बने का पूछत हस, अइसे सजे रथे जइसे बर-बिहाव के समें दुलहा-दुलहिन…
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