दोस्ती म हमर पराण रिहिस हे, जुन्ना अब संगवारी होगे। तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे। बाबू के घर म खेले कूदे, तै दाई के करस बड़ संसो। सुन्ना होगे भाई के अंगना, जिहाँ कटिस तोर बरसों।। अपन घर ह पराया अऊ, पर के घर अपन दुवारी होगे। तोर बिहाव के बाद संगी, मोर जिनगी ह अंधियारी होगे।। तोर आंखी म आँसू आतिस, त मोर छाती ह कलप जाये। जबै तैहा खुश होतै पगली, तभै मोला खुशी मिल पाये।। बिहाव होए ले संगी तोर, दिल के…
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हिसार म गरमी
चालू होवत हवय गरमी, जम्मो लगावय डरमी कूल। लागथे सूरज ममा हमन ल, बनावत हे अप्रिल फूल।। दिन म जरे घाम अऊ, रतिहा म लागथे जाड़। एईसन तो हवय संगी, हरियाणा म हिसार।। कोन जनी का हवय, सूरज ममा के इच्छा। जाड़ अऊ गरमी देके, लेवय जम्मो के परीक्क्षा।। मोटर अऊ इंजन के खोलई, होवत हवे आरी-पारी। पना-पेंचिस के बुता म, मजा आवत हवय भारी।। टूरा ता टूरा इहाँ, नोनी मन घला मजा उठावत हे। अऊ जादा होवत हवय, ताहन मुहुँ ल फुलावत हे।। इंजन के पढ़ई म, अजय सर…
Read Moreबेरोजगारी
दुलरवा रहिथन दई अऊ बबा के, जब तक रहिथन घर म। जिनगी चलथे कतका मेहनत म, समझथन आके सहर म।। चलाये बर अपन जिनगी ल, चपरासी तको बने बर परथे। का करबे संगी परवार चलाये बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।। इंजीनियरिंग, डॉक्टरी करथे सबो, गाड़ा-गाड़ा पईसा ल देके। पसीना के कमई लगाके ददा के, कागज के डिग्री ला लेथे।। जम्मो ठन डिग्री ल लेके तको, टपरी घलो खोले बर परथे। का करबे “राज” ल नौकरी बर, जबरन आज पढ़े बर परथे।। लिख पढ़ के लईका मन ईहाॅ, बेरोजगारी म…
Read Moreनवा बछर के मुबारक हवै
जम्मो झन हा सोरियावत हवै, नवा बछर हा आवत हवै। कते दिन, अऊ कदिहा जाबो, इहिच ला गोठियावत हवै।। जम्मो नौकरिहा मन हा घलो, परवार संग घूमेबर जावत हवै। दूरिहा-दूरिहा ले सकला के सबो, नवा बछर मनावत हवै।। इस्कूल के लईका मन हा, पिकनिक जाये बर पिलानिंग बनावत हवै। उखर संग म मेडम-गुरूजी मन ह, जाये बर घलो मुचमुचावत हवै।। गुरूजी मन पिकनिक बर लइका ल, सुरकछा के उदिम बतावत हवै। बने-बने पिकनिक मनावौ मोर संगी, नवा बछर ह आवत हवै।। नवा बछर के बेरा म भठ्ठी म, दारू के…
Read Moreमोर छत्तीसगढ़ के माटी
गुरतुर हावय गोठ इहाँ के, अऊ सुघ्घर हावय बोली। लइका मन ह करथे जी, सबो संग हँसी-ठिठोली।। फुरसद के बेरा में इहाँ, संघरा बइठे बबा- नाती। महर-महर ममहाये वो, मोर छत्तीसगढ़ के माटी।। बड़े बिहनिया ले संगी, बासी ह बड़ सुहाथे। आनी-बानी नी भावय, चटनी संग बने मिठाथे।। ईज्जा-पिज्जा इहाँ कहां, तैहा पाबे मुठिया रोटी। महर-महर ममहाये वो, मोर छत्तीसगढ़ के माटी।। गैस ले बड़ सुघ्घर संगी, चूल्हा के भात खवाथे। घाम के दिन बादर म, आमा के चटनी ह भाथे।। मटर-पनीर नी मिलय, पाबे किसम-किसम के भाजी। महर-महर ममहाये…
Read Moreकहानी – देवारी के कुरीति
गाँव म देवारी के लिपई-पोतई चलत रिहिस। सुघ्घर घर-दुवार मन ल रंग-रंग के वारनिश लगात रहिस। जम्मो घर म हाँसी-खुशी के महौल रिहिस। लइका मन किसम-किसम के फटाका ल फोरत रिहिस। एक झन ननकी लइका ह अपन बबा संग म घर के मुहाटी म बइठे रिहिस। ओ लइका ह बड़ जिग्यासु परवित्ति के रहिस। लइका मन ह बड़ सवालिया किसम के रहिथे। उदुक के अपन बबा ले पूछिस – बबा हमन देवारी तिहार ल कब ले अऊ काबर मनाथन। बबा ह ओ लइका ल राम भगवान के अयोद्धया लहुटे के…
Read Moreबतावव कइसे ?
मया पिरीत म बँधाय हन जम्मो, ए बँधना ले पाछू छोड़ावव मै कइसे? !1! बिना लक्छ के मोर डोंगा चलत हे, येला बने कुन रद्दा देखावव मै कइसे? !2! तोर दुख अऊ पीरा ल मानेव अपन मै, ओ पीरा ल तोर भूलावव मै कइसे? !3! नी देखे सकव तोर आँखी म आँसू, बिन जबरन तोला रोवावव मै कइसे? !4! सुरता ह तोर बड़ सताथे ओ संगी, अपन सुरता करवावव मै कइसे? !5! मया त तोर ले बड़ करथो जहुरिया, ये मया ल तोला जतावव मै कइसे? !6! ये मया पिरीत…
Read Moreहमर शिक्षा व्यवस्था
पढ़हईया लईका मन ला हमर देश के सिरिजन करईया कहे जाथे। फेर आज के दिन मा ऊखर जिनगी के संग खिलवाड़ होवत हवै। ओ लईका मन ल बिन जबरन के कल्लई करात हवै। आजे काली बिहिनिया कुन पेपर म पढ़ेबर मिलिस कि एक झन लईका ह 12वीं म पहिलि सेरेणी म पास होगे हवै तभो ले कालेज म अपन मन के पढ़ नी सकत हवै। पेपर म छपय रिहिस कि ओ लईका ह एसो 12वीं के परीक्छा दे रिहिस। फेर ओ लईका के काय गलती। ऐमा गलती तो ओछर पेपर…
Read Moreबादर के कन्डीसन
छत म मेहा बइठे रेहेव, तभेच दिमाक मोर ठनकिस। तुरतेच दिमाक ह मोर तीर, एकठन सवाल ल पटकिस।। कि बादर ह बरसे निहि, काबर ये हा ठड़े हवय। कोनो सराप दे दे हवय, धून सिकला म जड़े हवय।। कब गिरहि पानी कहि के, खेत म किसान खड़े हवय। एति-ओति निहि ओखर आँखि, बादर म गड़े हवय।। किसान मन ह बस ऐखरेच बर तरसत हवय। कि काबर ये साल बादर नी बरसत हवय।। ए साल किसान मन पानी ल सोरियावत हवय। इहिच ल सोरिया के ऊखर मुँहू सुपसुपावत हवय।। तरिया, नरवा,…
Read Moreआज के बड़का दानव
अभिच कुन के गोठ हवै। हमर रयपुर म घाम ह आगी कस बरसत रिहिस, जेखर ले मनखे मन परसान रिहिस। मेहा एक झन संगवारी के रद्दा देखत एक ठन फल-फूल के ठेला के तीर म बैठै रहव। ओ ठेला वाला करा अब्बड झन मनखे मन आतिस, अऊ अपन बड़ महँगा जिनिस लेके चल देवय। आप मन ह सोचत होहू कि फल-फूल वाला करा काय महाँगी समान होही? ओ समान रिहिस गुटका, बीड़ी, माखुर, सिगरेट, जरदा जैसे निशा के समान। असल म वो ठेला वाला मेर फल-फूल, कुरकुरे-पापड़ी के संग म…
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